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________________ तू आप है अपनी रोशनाई गया; एक क्षण जो अभी आया नहीं, भविष्य है; और दोनों के बीच में जो अंतराल है, वही वर्तमान है। और अंतराल बड़ा संकरा है। अगर तुम बहुत सूक्ष्मता से न देखोगे तो चूक जाओगे; जैसे तुम्हारे चैतन्य को खुर्दबीन बनाना पड़ेगा; जैसे कोई खुर्दबीन से देखता है तो छोटी-छोटी चीजें भी दिखाई पड़ती हैं, खाली आंख से दिखाई नहीं पड़तीं । ध्यान के सब प्रयोग तुम्हारी चेतना को खुर्दबीन बनाने के प्रयोग हैं, ताकि तुम गौर से देख सको और छोटी से छोटी चीज भी दिखाई पड़ सके। वैज्ञानिक अणु पर पहुंच गए, परमाणु पर पहुंच गए। जैसे वैज्ञानिक ने सारी खोज की है पदार्थ की और परमाणु पर आ गया, वैसे ही संतों ने, योगियों ने, रहस्य के खोजियों ने, जिन्होंने अंतरतम की खोज की है, चैतन्य की खोज की है, वे मुहूर्त पर आ गए, वे दो पलों के बीच में जो छोटा सा अंतराल है उस पर आ गए। 1 इसे समझो। विज्ञान की सारी खोज पदार्थ की खोज है। पदार्थ यानी स्पेस । पदार्थ यानी फैलाव, विस्तार, क्षेत्र । धार्मिकों ने सारी खोज समय की की है : टाइम । समय बाहर नहीं है, समय भीतर है। जो बाहर है वह क्षेत्र है। दोनों एक हैं । इसलिए अल्बर्ट आइंस्टीन ने दोनों के लिए एक ही शब्द बना लिया : स्पेसियोटाइम, समयाकाश। दो नहीं माना। दो हैं भी नहीं वे । जिसने आकाश की तरफ से पकड़ने की कोशिश की, वह विज्ञान है; और जिसने समय की तरफ से पकड़ने की कोशिश की, वही योग है, वही धर्म है। विज्ञान खोजते खोजते सूक्ष्म होता चला जाता है, परमाणु पर आ जाता है। धर्म खोजते खोजते सूक्ष्म होता चला जाता है और दो पलों के बीच में जो अंतराल है— मुहूर्त, उस पर आ जाता है। मुहूर्त परमाणु का ही पहलू है । परमाणु मुहूर्त का ही पहलू है। और ध्यान यानी अंतर की खुर्दबीन । जैसे विज्ञान खुर्दबीन को बढ़ाता गया है, बनाता गया है और 'सूक्ष्म से सूक्ष्म को देखने की क्षमता पैदा करता गया है, वैसे ही ध्यान भी, योग भी सूक्ष्म से सूक्ष्म को पाने की खोज में तल्लीन रहा है। 'समयातीत की धारा को भगवान बुद्ध ने मुहूर्त कहा है और आपने उसी को वर्तमान। यह मेरी समझ में भी आता है, फिर भी समझ से बाहर रह जाता है । ' ठीक कह रहे हैं । उचित कह रहे हैं। ऐसा ही होगा। क्योंकि यह बात एकदम समझ में आ जाने की नहीं है। यह समझ में आ जाती है और यह भी समझ में आ जाता है कि बहुत कुछ समझ के पार रह गया। यह बात तुम्हारी समझ से बड़ी है। इसका एक कोना ही तुम्हारी समझ में आ जाए तो बस काफी है। तुम्हारी समझ इसका स्पर्श कर ले—स्पर्श मात्र – तो बस काफी है। क्योंकि समझ बड़ी छोटी है, बुद्धि बड़ी छोटी है, सत्य विराट है। यही सौभाग्य है कि इतना सा भी तुम्हारी पकड़ में आता है। अगर इतना भी पकड़ में आ जाता है कि समझ में आता सा लगता है तो कदम 41
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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