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एस धम्मो सनंतनो लो, दिन में कई बार खो गया होगा-उलझने हैं, चिंताएं हैं, हजार-हजार परेशानियां हैं-कई बार धागा छूट-छूट गया होगा, फिर उसे पकड़ लो। क्योंकि रात फिर एक नई यात्रा शुरू होती है स्वप्नों की, निद्रा की। फिर ध्यान के धागे को पक, लो, फिर शुभ मुहूर्त में सो जाओ, ताकि रात स्वप्नों में भी छाया की तरह मंडराया रहे ध्यान, ताकि रात तुम्हारे अंतस्तल में एक धारा बहती रहे सातत्य की, ध्यान की।
ऐसे हमने दिन और रात सबको ध्यान में अनुस्यूत किया था।
मुहूर्त का अर्थ होता है : कुछ भी शुरू करने के पहले स्वयं का स्मरण कर लेना, ताकि हर कृत्य आत्मस्मरण की आधारशिला बनने लगे। यह भवन बनाना है तो एक-एक ईंट करके रखी जाएगी। यह कोई आकस्मिक रूप से नहीं हो जाएगा। प्रभुस्मरण की एक-एक ईंट, आत्मस्मरण की एक-एक ईंट रखनी पड़ेगी, तब कहीं यह भवन निर्मित होता है। हर ईंट प्रेम में डूबी हुई हो और हर ईंट ध्यान के स्वभाव में पगी हो।
निश्चित ही, बुद्ध ने जिसे मुहूर्त कहा है, उसे ही मैं वर्तमान कह रहा हूं। तुम मुहूर्त को तो पकड़ ही न पाओगे अगर वर्तमान को ही न पकड़ पाए। वर्तमान में होना ही निर्विचार होना है, क्योंकि वर्तमान में विचार हो ही नहीं सकते। सोचने का अर्थ ही होता है : या तो तुम पीछे का सोचने लगे या आगे का सोचने लगे। यहां और अभी सोचना कैसा? इसी क्षण में कैसे सोचोगे? क्या सोचोगे? अगर इसी क्षण में मौजूद हो गए तो सिर्फ मौजूदगी रह जाएगी, सोचना न रहेगा। सोचने की तरंग तो या तो पीछे की तरफ जाती है या आगे की तरफ जाती है। अभी और यहीं सोचने की कोई तरंग नहीं होती।
इसलिए वर्तमान का अर्थ है : ध्यान।
चौबीस घंटे में जितनी बार हो सके, वापस लौट-लौटकर अपनी मौजदगी को छू लेना। और यह काम कहीं भी हो सकता है, राह चलते हो सकता है। राह चलते पकड़ लेना अपनी मौजूदगी को, सोच-विचार को झिटक देना, झटका दे देना एक; जैसे कोई धूल झाड़ दे राह से चलता यात्री, ऐसे झड़क देना मन को थोड़ी देर को। एक क्षण को ही सही, लेकिन उस एक क्षण में ही तुम्हारे भीतर नित-नूतन और चिर-सनातन ऊर्जा का आविर्भाव हो जाएगा। वह सदा वहां है, तुम झांकते ही नहीं।
तेरा कंदील है तेरा दिल
तू आप है अपनी रोशनाई तुम चिल्लाए चले जाते हो, बहुत अंधेरा है; और मैं देखता हूं कि तुम्हारी कंदील जल रही है तुम्हारे भीतर। मैं देखता हूं कि भला-चंगा तुम्हारा प्रकाश तुम्हारे भीतर मौजूद है; और तुम चिल्लाए चले जाते हो, अंधेरा है। तुम भीतर देखते ही नहीं। क्योंकि भीतर देखने की पहली शर्त ही तुम पूरी नहीं करते। वह शर्त है : वर्तमान में होना। दो क्षणों के बीच जो अंतराल है। क्योंकि एक क्षण जो जा चुका, अतीत हो
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