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________________ तू आप है अपनी रोशनाई ब्राह्मण घर में पैदा होने से नहीं है; एक पावनता, एक पवित्रता से है। ब्राह्मण भोजन बनाए, इसका अर्थ यह है कि ध्यान से भोजन का कुछ संबंध जुड़ जाए, तो तुम एक और ही तृप्ति पाओगे उस.भोजन से। उससे शरीर ही पुष्ट न होगा, उससे तुम्हारी आत्मा को भी बल मिलेगा। प्रेम से कोई भोजन बनाए, अहोभाव और आनंद से और उत्सव से कोई भोजन बनाए, गृहणी गीत गुनगुनाते, भजन गाते हुए भोजन बनाए, तो इस भोजन में हजार चीजें और बढ़ जाएंगी जो भोजन की नहीं हैं, जिनका कोई संबंध भोजन से नहीं है। यह तुम्हें बड़े गहरे तक एक पोषण देगा। यह जीवन में एक गहरी शांति भी लाएगा, एक तृप्ति भी लाएगा। लेकिन ऐसा अब होता नहीं है। गृहणी गाली देती रहती है, क्रोध से भुनभुनाती रहती है, क्रोध से बर्तन पटकती रहती है, प्लेटें टूटती रहती हैं, उन्हीं के बीच भोजन बनता है। यह भोजन ज्यादा से ज्यादा शरीर को भी तृप्ति दे दे तो बहुत, उतनी भी आशा करनी ठीक नहीं। इस भोजन के साथ रोग जा रहा है। इस भोजन के साथ क्रोध जा रहा है। इस भोजन में लिपटी हुई गलत रुग्ण ऊर्जा जा रही है। यह भोजन जहर है। इसने अमृत का गुणधर्म खो दिया। फिर इस तरह पारस्परिक उपद्रव बढ़ते चले जाते हैं। पति इस भोजन को करेगा, बेटा इस भोजन को करेगा, और ये रोग उसमें पलेंगे और वह इन रोगों को पत्नी पर, मां पर फेंकेगा। और मां और क्रुद्ध होगी, और परेशान होगी, और पत्नी और दुखी होगी, और पीड़ित होगी-और यह सिलसिला दुष्टचक्र बन जाएगा। शुभ मुहूर्त में सारे काम की शुरुआत हो। सुबह जब सोकर उठे कोई तो जल्दी न करे, पहले ध्यान का सूत्र पकड़े, फिर पैर बिस्तर के बाहर निकाले; क्योंकि बिस्तर के बाहर पैर निकालना एक बड़ी यात्रा है। अब चौबीस घंटे फिर एक नया दिन शुरू हुआ, फिर नए संबंध बनेंगे, लोगों से मिलना होगा, हजार बातें होंगी, हजार घटनाएं घटेंगी-एक क्षण डुबकी लगा ले ध्यान में। ___इसलिए सारे धर्मों ने कहा है कि सुबह उठते ही प्रार्थना-प्रार्थना पहला कृत्य हो, ताकि मुहूर्त सध जाए-फिर तुम चलो यात्रा पर, फिर कोई हर्जा नहीं। फिर धर्मों ने यह भी कहा है कि दिन में भी कुछ पड़ाव बना लो; जैसे इस्लाम ने कहा है कि पांच बार, बार-बार शुभ मुहूर्त को पकड़-पकड़ लो। तो ऐसे अगर कोई दिन में पांच बार नमाज पढ़े, सच में ही पढ़े, ऐसा दोहरा ही न रहा हो सिर्फ एक उपचार को, तो वह पाएगा हैरान होकर कि संसार में रहते हुए भी संसार में नहीं है। क्योंकि बार-बार इसके पहले कि संसार की धूल जमे, वह फिर नहा लेगा; इसके पहले कि संसार का उपद्रव उसे घेर ले और रुग्ण कर जाए, वह फिर ताजा हो जाएगा, वह फिर परमात्मा से शक्ति ले लेगा, फिर अपने भीतर छुपकर एक डुबकी लगा लेगा, फिर प्रभामंडित होकर, आनंदमंडित होकर वापस संसार में लौट आएगा। रात सोते वक्त फिर ध्यान के क्षण में ही सोना है। फिर क्षणभर को धागा पकड़
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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