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________________ तू आप है अपनी रोशनाई की तरफ ले जाता है—घसिटती है गाय, जाना नहीं चाहती, अटका-अटका लेती है पैरों को, जबरदस्ती घसिटना पड़ता है—ऐसे ही दुख में मन जाना नहीं चाहता, दुख से बचना चाहता है, भाग जाना चाहता है। दुख कसाई-घर जैसा मालूम होता है। दुख में कहीं छिपी मौत मालूम होती है, समय लंबा हो जाता है। मन ठिठकता है, झिझकता है, जाना नहीं चाहता, रुकता है, लंगड़ता है, तो समय भी लंगड़ाने लगता है; क्योंकि समय मन का ही दूसरा नाम है। जब तुम सुख में होते हो, तुम नाचते चलते हो, गीत गाते चलते हो, तुम गुनगुनाते चलते हो। तुम दौड़कर चलते हो, समय भी दौड़ने लगता है, समय भी पंख लगा लेता है। समय यानी तुम्हारा मन। और जब तुम आनंद में होते हो तो मन शून्य हो जाता है। मन होता ही नहीं, तभी तुम आनंद में होते हो। कोई विचार की तरंग नहीं होती, झील बिलकुल चुप हो जाती है, कोई लहर आती न जाती, मन ठहर जाता है—जैसे बुद्ध बैठे हों बोधिवृक्ष के नीचे, ऐसा सब ठहर जाता है। उस ठहरेपन में अचानक तुम पाते हो, समय भी ठहर गया। ' और समय की यह ठहरी दशा ही समाधि है। समय की यह ठहरी दशा ही सम्यकत्व है। समय की यह ठहरी दशा ही सदबुद्धि का जन्म है। समय की इस ठहरी दशा में ही शाश्वत तुम्हारी तरफ आता है; तुम कहीं नहीं जाते; तुम ठहर गए होते हो; आकाश तुम में झांकता है; परमात्मा तुम्हारे द्वार पर दस्तक देता है। ___मुहूर्त का अर्थ क्या होता है? मुहूर्त का अर्थ होता है : दो क्षणों के बीच का अंतराल। मुहूर्त कोई समय की धारा का अंग नहीं है। समय का एक क्षण गया, दूसरा क्षण आ रहा है, इन दोनों के बीच में जो बड़ी पतली संकरी राह है-मुहूर्त। __ शब्द फिर विकृत हुआ। अब तो लोग कहते हैं, उसका उपयोग ही तभी करते हैं, जब उन्हें यात्रा पर जाना हो, विवाह करना हो, शादी करनी हो, तो वे कहते हैं, शुभ मुहूर्त। उसे वे पंडित से पूछने जाते हैं कि शुभ मुहूर्त कौन सा है। लेकिन यह शब्द बड़ा अदभुत है। • शुभ मुहूर्त का अर्थ होता है : कोई भी यात्रा शुरू करना, कोई भी यात्रा-वह विवाह की हो, प्रेम की हो, काम-धंधे की हो-शुरू करते वक्त मन रुक जाए, ऐसी दशा में शुरू करना। मन से शुरू मत करना, अन्यथा कष्ट पाओगे, भटक जाओगे। अ-मन की अवस्था में करना, शून्य से शुरू करना, तो शुभ ही शुभ होगा, मंगल ही मंगल होगा। क्योंकि शून्य से जब तुम शुरू करोगे, तो तुम शुरू न करोगे परमात्मा तुम्हारे भीतर शुरू करेगा। - शुभ मुहूर्त का अर्थ बड़ा अदभुत है ! उसको ज्योतिषी से पूछने की जरूरत नहीं है। ज्योतिषी से उसका कोई संबंध नहीं है। उसका संबंध अंतर-अवस्था से है, अंतर-ध्यान से है। कोई भी काम करने के पहले, कामना से न हो, अत्यंत शांत मौन अवस्था से हो, ध्यान से हो। 37
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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