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एस धम्मो सनंतनो
दूसरा प्रश्न:
समयातीत की धारा को भगवान बुद्ध ने मुहर्तभर कहा है और
आपने उसी को वर्तमान कहा। यह मेरी समझ में भी आता है, फिर भी समझ के बाहर रह जाता है। लेकिन इस अल्प समझ से ही जो आनंद आता है, उससे मैं कृतज्ञता के भाव से भर जाता हूं। भगवान, मैं आपकी शरण आता हूं।
जिन्होंने भी जाना, जो भी जागे, उन सभी ने एक बात तो सुनिश्चित रूप से
-कही है कि सत्य समय की धारा के बाहर है, समयातीत है, कालातीत है। संसार है समय के भीतर-या यूं कहो कि जो समय के भीतर है वही संसार है; जो समय के बाहर है वही मोक्ष है।
इसकी तुम अपने जीवन में थोड़ी-थोड़ी झलकें कभी-कभी जुटा सकते हो। सोचो : जब दुखी होते हो तो समय लंबा मालूम होता है। जब कोई पीड़ा सघन हो जाती है और प्राण किसी दुख में तड़पते हैं, समय लंबा हो जाता है। घड़ी की चाल तो वही होती है। घड़ी कोई तुम्हारे दुख-सुख को नहीं देखती। घड़ी को तुम्हारे दुख-सुख का कोई पता नहीं है। घड़ी तो अपनी चाल से चलती है, लेकिन घंटा ऐसे बीतता है, जैसे सदियां बीत रही हैं। जिसने दुख जाना है उसने समय की लंबाई जानी है; समय बड़ा लंबा होता जाता है। कोई मरणासन्न है प्रियजन और रात तुम उसकी खाट के पास बैठे हो; रात ऐसी लंबी हो जाती है कि कई बार मन में होने लगता है : यह रात समाप्त होगी, न होगी? सुबह होगी, न होगी?
फिर तुमने सुख के क्षण भी जाने हैं। सुख के क्षण जल्दी भागते हैं, उनमें पंख लग जाते हैं, वे उड़े-उड़े जाते हैं। दुख के क्षण घसिटते हैं, जैसे लंगड़ा आदमी घसिटता है। सुख के क्षणों में पंख लग जाते हैं, भागते हैं, उड़ते हैं; घड़ी तेज चलती मालूम होने लगती है। कोई प्रियजन घर में आ गया है, घड़ी ऐसे बीत जाती है जैसे पल बीते।
सुख में समय छोटा हो जाता है; दुख में बड़ा हो जाता है; आनंद में शून्य हो जाता है-होता ही नहीं। अगर कभी तुमने आनंद का क्षण जाना है या कभी जानोगे, तो तुम एक बात पाओगे कि समय ठहर जाता है, घड़ी रुक जाती है। सब ठहर जाता है। अचानक सारा अस्तित्व ठहर जाता है। इधर तुम्हारा. मन ठहरा कि वहां समय ठहरा।
मन और समय एक ही चीज के दो नाम हैं।
दुख में मन घसिटता है, इसलिए समय घसिटता मालूम होता है। दुख में मन बेमन से जाता है, जाना नहीं चाहता। जैसे कोई कसाई गाय को बांधकर कसाई-घर
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