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तू आप है अपनी रोशनाई मिटा देगा? जीवन तुम्हारा है, प्रश्न तुम्हारे हैं। उत्तर भी तुम्हारे होंगे, समाधान भी तुम्हारा होगा। कंठ तुम्हारा प्यासा है, मेरे उत्तर से क्या होगा हल ! तुम्हें सरोवर खोजना पड़ेगा। ज्यादा से ज्यादा इतना कह सकता हूं, इसी राह मैं भी चला था, घबड़ाना मत। कितनी ही प्यास बढ़ जाए, निराश मत होना-सरोवर है । इतनी आस्था तुम्हें दे सकता हूं।
जो उत्तर मैं तुम्हें दे रहा हूं, वे प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं, सिर्फ तुम्हारी कमजोर हिम्मत न हो जाए, तुम हिम्मतपस्त न हो जाओ। राह लंबी है, सरोवर दूर है; मुफ्त नहीं मिलता; बड़ा कंटकाकीर्ण मार्ग है, भटक जाने की ज्यादा संभावनाएं हैं पहुंच जाने की बजाय । करीब-करीब आ गए लोग भी भटक गए हैं; पहुंचते-पहुंचते गलत राह पकड़ ली है; पहुंच ही गए थे कि पड़ाव डाल दिया। दो कदम बाद सरोवर था कि थक गए और सोचा कि मंजिल आ गई; आंख बंद कर ली और सपने देखने लगे। इतना ही तुमसे कह सकता हूं कि सरोवर है और सरोवर को पाने का तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है । पर खोजे बिना यह न होगा।
और खोज से इतना डर क्यों लगता है ? क्योंकि खोज का अर्थ ही होता है : अनजाने रास्तों पर यात्रा करनी होगी। खोज का अर्थ ही होता है: नक्शे नहीं हैं हाथ में, नहीं तो नक्शों के सहारे चल लेते; राह पर मील के पत्थर नहीं लगे हैं, नहीं तो उनके सहारे चल लेते। खोज जटिल है इसलिए कि तुम चलते हो, तुम्हारे चलने से ही रास्ता बनता है । रास्ता पहले से तैयार नहीं है। राजपथ नहीं है जिस पर भीड़ चली जाए।
इसलिए तुमसे कहता हूं : धर्म वैयक्तिक है।
संप्रदाय तुम्हें धोखा देता है राजपथ का। हिंदू चले जा रहे हैं, मुसलमान चले जा रहे हैं, तुम भी साथ-संग हो लिए, बड़ी भीड़ जा रही है! लेकिन जो भी पहुंचा है, अकेला पहुंचा है; याद रखना, भीड़ कभी पहुंची नहीं। जो भी पहुंचा है, नितांत एकांत में पहुंचा है। जो भी पहुंचा है, इतना अकेला पहुंचा है कि खुद भी अपने साथ न था उन पहुंचने के क्षणों में इतनी शून्य एकांत की दशा में कोई पहुंचा है कि खुद भी न था मौजूद; दूसरे की तो बात और। दूसरे की तो जगह ही न थी, अपने लिए भी जगह नहीं।
जब खोजते खोजते तुम खो जाओगे, तब खोज पूरी होती है। जब खोजतेखोजते तुम भूल ही जाओगे कि तुम भी हो, किसी क्षण में, किसी ऐसे विराट क्षण में, जब तुम भी तुम्हारे साथ नहीं होते, उसी क्षण परमात्मा बरस उठता है । फिर तो नामों के भेद हैं- परमात्मा कहो, मोक्ष कहो, निर्वाण कहो, कैवल्य कहो, या कुछ भी न कहो। एक बात लेकिन सच है और पक्की है कि तुम नहीं होते ।
सारा काम मिटने का है। सारी कला मिटने की है। दीप का जलना, चमकना गेह का
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