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________________ स्थितप्रज्ञ, सत्पुरुष है कल की बात ही उठानी व्यर्थ है। वह सदा ही आज है। बीज का अंतिम चरण प्रिय बीज ही है, फल नहीं है डाल कोंपल फूल किसलय एक केवल आवरण हैं भूलता इसमें कभी क्या बीज निज को एक क्षण है ? आज का अंतिम चरण तो आज ही है, कल नहीं है दिवस रजनी मास वत्सर ताप हिम मधुमास पतझर लय कभी इनमें हुआ क्या आज के अस्तित्व का स्वर? पंथ की अंतिम शरण तो पंथ ही है, मंजिल नहीं है बीज का अंतिम चरण प्रिय बीज ही है, फल नहीं है बीज फिर बीज हो जाता है सारी यात्रा के बाद। अंकुरण होता, वृक्ष बनता, फूल लगते, फल लगते, बीज फिर आ जाता है। पहले भी बीज, अंत में भी बीज।। तो बीच में सब खेल है। तो बीच में जितने रूप लिए, वे सब आवरण हैं। तो बीच में जो बहुरंग लिए, जो बहुरुपिया बना बीज-कभी फूल, कभी पत्ती, कभी वृक्ष-वह वास्तविक नहीं है। वह जो प्रथम है और फिर अंत में हो जाता है, वही वास्तविक है। __वर्तमान ही केवल वास्तविक है। वही सदा-सदा लौट आता है। कल फिर आज आ जाएगा। जब कल आएगा तो कल न होगा; कल जब आएगा, फिर आज हो जाएगा। परसों जब आएगा तब आज हो जाएगा। जिसे तुम बीता कल कह रहे हो, वह भी आज ही था; और किसी समयातीत लोक में आज भी आज ही है। हमारे देखने की सीमा है। हम अखंड विस्तार को नहीं देख पाते; खंड कर-कर के देखते हैं। ____ जैसे तुम एक रास्ते पर खड़े हो। एक आदमी गुजरा, तुम्हारे सामने आया तो दिखाई पड़ा; फिर आगे के मोड़ पर मुड़ गया तो दिखाई नहीं पड़ता। पीछे के मोड़ पर जब तक नहीं मुड़ा था, दिखाई नहीं पड़ता था। जब तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता था, तब भी वह था। अब जब तुम्हें नहीं दिखाई पड़ता, आगे के मोड़ पर मुड़ गया, तब भी है। तुम्हारे देखने की सीमा है, उसके होने की सीमा नहीं है। तुम्हारे देखने की 25
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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