________________
एस धम्मो सनंतनो
सीमा ही उसके होने की सीमा नहीं है।
फिर एक आदमी झाड़ पर चढ़ा बैठा है, उसको वह दूर तक दिखाई पड़ता है। नीचे खड़े आदमी को जब दिखाई पड़ना बंद हो जाता है, तब भी उसे दिखाई पड़ता है। फिर कोई आदमी हवाई जहाज पर सवार है, तो उसे और भी दूर तक दिखाई पड़ता है। जितनी तुम्हारी चैतन्य की ऊंचाई बढ़ती जाती है, उतना ही तुम पाते हो, तुम्हारी दृष्टि बड़ी होती जाती है।
तो जिसे तुम अतीत कहते हो, वह भी ज्ञानी को वर्तमान ही दिखाई पड़ता है। जिसे तुम भविष्य कहते हो, वह भी ज्ञानी को वर्तमान ही दिखाई पड़ता है।
ज्ञानी के लिए बीज ही सत्य है। क्योंकि वही-वही लौट आता है। वर्तमान ही सत्य है, क्योंकि वही-वही पुनरुक्त होता है। अतीत और भविष्य हमारी सीमाओं के द्योतक हैं।
समय अविभाज्य है। न तो कुछ अतीत है, न तो कुछ भविष्य। जो है, वह सदा है। ध्यान से जिन्होंने देखा है, उन्होंने कहा है, जो सदा है, वही है। जो है, वह सदा है।
बीज का अंतिम चरण प्रिय बीज ही है, फल नहीं है डाल कोंपल फल किसलय एक केवल आवरण हैं भूलता इसमें कभी क्या बीज निज को एक क्षण है? आज का अंतिम चरण तो आज ही है, कल नहीं है दिवस रजनी मास वत्सर ताप हिम मधुमास पतझर लय कभी इनमें हुआ क्या आज के अस्तित्व का स्वर? पंथ की अंतिम शरण तो पंथ ही है, मंजिल नहीं है बीज का अंतिम चरण प्रिय
बीज ही है, फल नहीं है वासना, फल की आकांक्षा है। ध्यान, फलाकांक्षा से मुक्ति है।
इसलिए कृष्ण की पूरी गीता एक शब्द पर टिकी है: फलाकांक्षा का त्याग। वासना कहती है, कल क्या होगा, उसको सोचती है। उसी सोचने में आज को गंवा देती है। ध्यान आज जीता है; कल को सोचता नहीं। उसी जीने से कल उमगता है,
26