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एस धम्मो सनंतनो
बिलकुल फिक्र मत कर।
उसने कहा, वह मैं समझा कि आप यह करोगे। आप उससे कुछ पीछे नहीं हो, लेकिन उनमें से कोई भी गर्दन मेरे सिर पर बैठेगी न। मैं तो गया! तुम मेरी एक गर्दन के लिए हजार फ्रांसीसियों की गर्दन काट दोगे माना, लेकिन उनमें से कोई भी मुझे जिंदा न कर पाएगी। इससे क्या फर्क पड़ता है फिर कि मेरे मरने के बाद तुमने काटे या न काटे? मैं गया!
तुमने एक झूठ बोला, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने सच बोलोगे इसके बाद। तुमने एक आदमी को छुरी मार दी, इससे क्या फर्क पड़ता है कि फिर तुमने फूलमाला पहना दी! तुमने किसी को गाली दे दी, इससे क्या फर्क पड़ता है कि तुम गए और स्तुति कर आए! __ लेकिन जीवन में निरंतर तुम्हारा मन तुम्हें ये बातें समझाए जाता है कि कोई हर्जा नहीं, चोरी कर ली, फिर पुण्य कर देंगे। पाप कर लिया, फिर तीर्थयात्रा कर आएंगे, हज हो आएंगे, हाजी हो जाएंगे। ये सब तरकीबें हैं मन की। इनसे सजग रहना। __जो किया, वह किया; उसे अनकिया करने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि अतीत में वापस जाने का कोई उपाय नहीं है। जो हो गया, हो गया।
हां, उससे पार होने का उपाय है; उसको अनकिया करने का उपाय नहीं है। तुमने अगर एक आदमी की गर्दन काट दी, अब तुम क्या करोगे? तुम लाख मंदिर बनवाओ, तुम लाख पूजा चढ़वाओ, तुम हजारों ब्राह्मणों को भोजन करवाओ, इससे क्या होगा? जो हो गया, हो गया। हां, यह हो सकता है कि तुम बोधपूर्ण हो जाओ, जाग जाओ, तो पार हो जाओगे, अतिक्रमण हो जाएगा। लेकिन जो किया जा चुका, उसको अनकिया नहीं किया जा सकता। ___इसलिए जब झूठ और बेईमानी तुम्हारे मन को पकड़े और तुम्हें दलीलें दे कि यह तो छोटी सी बात है, कर लो; तब थोड़े सावधान रहना। कोई बात छोटी नहीं। क्योंकि हर घड़ी तुम्हारी आत्मा दांव पर है। और यहां मुफ्त कुछ भी नहीं है, हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। और मजा तो यह है कि कीमत बहुत चुकानी पड़ती है, मिलता कुछ भी नहीं। पूरी जिंदगी के बाद हाथ तो खाली होते हैं, आत्मा भी खो गई होती है। __'जो अपने लिए या दूसरों के लिए पुत्र, धन या राज्य नहीं चाहता, वही सत्पुरुष
___ अचाह सत्पुरुष की सुगंध है। अचाह! क्योंकि जैसे ही तुमने कुछ चाहा, वैसे ही तुम किसी से छीनने को तत्पर हो जाओगे। अगर बहुत धन चाहिए तो छीनना पड़ेगा। अगर बहुत प्रतिष्ठा चाहिए तो छीननी पड़ेगी। अगर बड़े पद चाहिए तो किन्हीं को हटाना पड़ेगा, कोई वहां मौजूद है। सब में हिंसा होगी।
जो बिना छीने मिल जाए, उसे ही संपदा मानना। जो बिना मांगे मिल जाए, उसे