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एस धम्मो सनंतनो
दूसरे दिन अपने मकान को देखा, तो मुझे ऐसा लगा, जैसे एक सफाई हो गई; स्नान कर लिया हो। ___ जैसे ही तुम भीतर जाओगे, वैसे ही बाहर की घटनाएं कम से कम मूल्य की रह जाएंगी। धीरे-धीरे उनमें कोई मूल्य नहीं रह जाता। जैसे सांप अपनी केंचुल को छोड़कर सरक जाता है, ऐसे ही तुम अपने बाहर को छोड़कर भीतर सरक जाते हो। बाहर केंचुली ही पड़ी रह जाती है; उसका कोई भी मूल्य नहीं है। ___'जो अपने लिए या दूसरों के लिए पुत्र, धन या राज्य नहीं चाहता और न अधर्म से अपनी उन्नति चाहता है, वही शीलवान, प्रज्ञावान और धार्मिक है।'
'जो अपने लिए या दूसरों के लिए...।'
क्योंकि हम बड़े धोखेबाज हैं। हम कहते हैं, अपने लिए तो हमें कुछ भी नहीं चाहिए, बच्चों के लिए कर रहे हैं। हम कहते हैं, अपने लिए तो क्या करना है? . अपने लिए तो हम संन्यासी ही हैं, लेकिन अब पत्नी है, बच्चे हैं, घर-द्वार है। हमारी बेईमान का अंत नहीं है। हम बड़ी तरकीबें निकालते हैं। हम दूसरों के कंधों पर रखकर बंदूकें चलाते हैं।
तो बुद्ध कह रहे हैं, जो अपने लिए या दूसरों के लिए पुत्र, धन या राज्य नहीं चाहता...।'
जो महत्वाकांक्षी नहीं है। जिसके मन में प्रतिस्पर्धा की दौड़ नहीं है।
ध्यान रखना, जब भी तुम कुछ चाहते हो बाहर के संसार में तो तुम्हें आत्मा से मूल्य चुकाना पड़ता है। कौड़ी-कौड़ी भी तुम बाहर से लाते हो तो कुछ गंवाकर लाते हो। ऐसे मुफ्त कुछ भी नहीं मिलता। और बड़ा महंगा सौदा है।
पांच रुपए कमा लेते हो जरा सा झूठ बोलकर, तुम सोचते हो, इतने से झूठ में क्या बिगड़ेगा? लेकिन उतने झूठ में तुमने आत्मा का एक कोना गंवा दिया। तुमने भीतर की एक स्वच्छता गंवा दी। तुमने भीतर की एक शांति गंवा दी। क्योंकि एक झूठ हजार झूठ लाएगा; फिर कोई अंत नहीं है। हजार झूठ, करोड़ झूठ लाएंगे। एक छोटा सा झूठ बोलकर देखो कि झूठ में कैसी संतानें पैदा होती हैं। झूठ की बड़ी श्रंखला पैदा होती है, बच्चे पर बच्चे पैदा होते चले जाते हैं। झूठ संतति-निग्रह को मानता ही नहीं। वह पैदा ही किए चला जाता है।
सत्य बिलकुल बांझ है। खयाल करो, जब भी तुम एक सत्य बोलते हो, बात खतम हो गई; पूर्णविराम आ गया। झूठ का सिलसिला अंत होता ही नहीं। सच बोलते हो, याद भी नहीं रखना पड़ता। झूठ के लिए बड़ी याददाश्त चाहिए। सच के लिए याददाश्त की भी जरूरत नहीं; उतना बोझ भी जरूरी नहीं। झूठ के लिए तो याददाश्त चाहिए ही। किसी से कुछ बोला, किसी से कुछ बोला। इस आदमी से झूठ बोल दिया आज, अब यह कल फिर पूछे तो कल का झूठ भी याद रखना चाहिए। और झूठ खिसकता है, क्योंकि झूठ की कोई जगह नहीं होती है ठहरने की।
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