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________________ शब्द : शून्य के पंछी और तुम यह नहीं कह सकते कि कसम खाने से न आएगा, क्योंकि कसम खाने से क्रोध के आने-जाने का क्या लेना-देना, क्या संबंध है? सच तो यह है कि तुम कसम ही इसलिए खा रहे हो कि तुमको भी पता है कि कल आएगा। नहीं तो कसम क्यों खाते? कसम किसके लिए खाते? कल अगर आना ही नहीं है तो बात ही खतम हो गई, कसम क्यों खाते? तुम भी डरे हो, तुम भी जानते हो अपने को भलीभांति-अपने स्वभाव को, अपनी आदतों को, अपने अतीत को। तुम जानते हो कि कल यह फिर होगा; कसम खा लो, कसम को अटका दो बीच में; शायद कसम रोकने में सहयोगी बन जाए। फिर कल क्रोध आएगा तो तुम दमन करोगे। बुद्ध कहते हैं, आज क्रोध आया, समझो, जागो, ध्यान करो; इस क्रोध को बोधपूर्वक विसर्जित होने दो। यह क्रोध अंधेरे में विसर्जित न हो जाए, अन्यथा फिर आएगा। इसको सम्यकरूपेण विदा दो। इसको द्वार-दरवाजे पर लाकर नमस्कार करके विदा दो। इसको होशपूर्वक विदा दो। कसम मत खाओ, सब कसमें अंधेरे में हैं। बेहोश आदमी कसम खाते हैं, होश से भरा आदमी कभी कोई कसम नहीं खाता। कसम का सवाल क्या है ? होश पर्याप्त है। सब कसमें होश में पूरी हो जाती हैं। फिर कल अगर क्रोध आएगा तो जो होश आज साधा था, उसको कल फिर साधेंगे। धीरे-धीरे होश को बढ़ाएंगे, होश को साधेंगे; क्रोध विसर्जित हो जाएगा। होशपूर्ण व्यक्ति क्रोध करता ही नहीं; क्रोध के लिए बेहोशी अनिवार्य शर्त है। मुझे ऐसा कहने दोः क्रोध के लिए बेहोशी अनिवार्य शर्त है और कसम के लिए भी बेहोशी अनिवार्य शर्त है। कसम बेहोश आदमी खाते हैं और बेहोश आदमी ही क्रोध करते हैं। बेहोश आदमी ही कामवासना में पड़ते हैं और बेहोश आदमी ही ब्रह्मचर्य का नियम लेते हैं। बेहोशी में दमन होने लगता है। . बुद्ध कह रहे हैं, 'नित्य अपने को संयम करने वाला जो पुरुष है...।' मैं बड़ा चकित होकर देखता रहा हूं, क्यों धम्मपद के ऊपर चिंतन, स्वाध्याय करने वाले लोग इस नित्य शब्द को चूकते चले गए। यह इतना साफ है, इसमें कुछ कहने की जरूरत नहीं है, बिलकुल सीधा है। ___ 'नित्य अपने को संयम करने वाला...।' । ताजा, रोज-रोज, फिर-फिर होशपूर्वक जीने वाला। कल की बासी प्रतिज्ञा नहीं, आज की ताजी प्रज्ञा; आज का होश। '...जो पुरुष है, उसकी जीत को न देवता, न गंधर्व, न ब्रह्मा और न मार ही अनजीता कर सकते हैं।' कोई उसकी जीत को अनजीता नहीं कर सकता। जिसकी जीत की बुनियाद होश में रखी गई है, उसकी जीत की बुनियाद को कोई भी कभी उखाड़ नहीं सकता। 295
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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