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________________ एस धम्मो सनंतनो किसी दूसरे ने अगर तुमसे कहा कि मत करो, इससे लाभ न होगा। जब तुम्ही समझोगे जीवन के प्रगाढ़ अनुभव से न करने की बात; क्योंकि कर-कर के तुम जलोगे, कर-कर के तुम दुख पाओगे; उस दुख से ही जब बोध उठेगा और समझोगे कि यह न करने जैसा है-इसलिए नहीं कि शास्त्र कहते हैं, इसलिए नहीं कि सदगुरु कहते हैं, बल्कि इसलिए कि सारा जीवन तुम से कहता है, तुम्हारा अनुभव तुम से कहता है। इस फर्क को ठीक से समझ लेना। जब तुम्हारा अनुभव तुम से कहता है, तुम्हारे भीतर कोई द्वंद्व पैदा नहीं होता। जब तुम्हीं अपने से कहते हो कि यह बात व्यर्थ है, करने योग्य नहीं लेकिन तुम्हारे अनुभव से आनी चाहिए यह बात। किताब पढ़कर, शास्त्र पढ़कर भी तुम कह सकते हो कि नहीं, यह करने योग्य नहीं। तब तुम तत्क्षण भीतर पामोगे, द्वंद्व खड़ा हो रहा है। एक मन करना चाहता है, एक मन न करना चाहता है। अगर द्वंद्व पैदा हो तो समझना कि तुम फ्रायड वाले दमन के चक्कर में पड़ रहे हो। अगर द्वंद्व पैदा न हो, तुम्हारा अनुभव, तुम्हारी समझ कहे, करने योग्य नहीं और छूट जाए, तो ही बुद्ध के अर्थों में दमन हुआ। . 'अपने को दमन करने वाला और नित्य अपने को संयम करने वाला जो पुरुष यह बड़ी अनूठी सूक्ति है; इसे तुम जरा गहरे से समझना। 'और नित्य अपने को संयम करने वाला जो पुरुष है...।' धम्मपद पर बहुत टीकाएं लिखी गई हैं, लेकिन कोई भी टीका ने इस सूक्ति के परम मूल्य को नहीं समझा। सूक्ति का परम मूल्य छिपा है नित्य शब्द में'नित्य अपने को संयम करने वाला जो पुरुष है...।' व्रत लेकर संयम मत करना। व्रत का मतलब होता है, आज कसम खाते हो, कल संयम करने की। नित्य संयम का अर्थ होता है : कल जीवन को देखेंगे और जीवन जहां ले जाएगा, जो बोध देगा, उसके अनुसार चलेंगे। प्रतिपल तुम्हारा संयम हो, बासा न हो। जिनको तुम मुनि, साधु-संन्यासी कहते हो, उनका सब संयम बासा है। कसम ले ली थी कभी, अब उस कसम को पाल रहे हैं, क्योंकि कैसे उस कसम को तोड़ें? अहंकार आड़े आता है। यह संयम बासा है। ये कल की पकाई रोटी आज खा रहे हैं। बुद्ध कहते हैं, रोज ताजा संयम; यह बड़ी अनूठी बात है। इसका मतलब है: रोज-रोज जीना, प्रतिपल जीना, होशपूर्वक जीना। होश ही संयम है। व्रत नहीं, होश। नियम की प्रतिज्ञा नहीं, नियम का बोध।। ऐसा मत कहना कि कसम खाता हूं, अब क्रोध न करूंगा। यह तो दमन बन जाएगा फ्रायड के अर्थों में। क्योंकि कल अगर क्रोध आएगा, फिर तुम क्या करोगे? आज कसम खा ली कि कल क्रोध न करेंगे, कल क्रोध आएगा तो तुम क्या करोगे? 294
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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