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शब्द : शून्य के पंछी मुक्त हो जाना। इस भेद को खयाल में रखना।
फ्रायड ने जो दमन का अर्थ किया है, उस अर्थ में दमन खतरनाक है, बहुत खतरनाक है। क्योंकि तुम जो भी दबा लोगे, वह बार-बार प्रगट होगा। तुम जो भी दबा लोगे, उसमें रस और बढ़ जाएगा, घटेगा नहीं। तुम जो भी दबा लोगे, उसको करने की और इच्छा हो जाएगी। मैं कल एक कविता पढ़ता था अज्ञेय की
बापू ने कहा, विदेश जाना तो और जो करना हो सो करना गौ-मांस मत खाना। बापू ने कहा, विदेश जाना तो और जो करना हो सो करना गौ-मांस मत खाना। अंतिम पद निषेध का था स्वाभाविक था उसका मन से उतरना बाकी बापू की मानकर करते रहे और सब करना बाकी बापू की मानकर
करते रहे और सब करना सिर्फ एक बात, वह जो गौ-मांस की थी, वही भर न कर पाए।
जिस बात को भी रोका जाएगा, जिस बात का भी निषेध किया जाएगा, उसी में आकर्षण, महंत आकर्षण पैदा हो जाता है। तुम से अगर कहा, यह मत करना, कि तुम्हारे मन में तत्क्षण करने की भावना उठने लगती है। सुनते ही, मत करना, तुम्हारे भीतर कोई गहन अहंकार उठ आता है कि करके रहेंगे। .. अगर तुम न करोगे तो तड़फोगे कि कैसे करें? अगर करोगे तो अपराध का भाव मालूम होगा। यह तो मुक्ति का उपाय न हुआ। किया तो फंसे, क्योंकि अपराध और ग्लानि मालूम होगी कि गलत किया, पाप किया। न किया तो फंसे रहे, क्योंकि करने की आकांक्षा प्रज्वलित होती रही, ईंधन पड़ता रहा। यह तो दोनों तरफ फंस गए। यह तो कहीं कोई बचाव न रहा। फ्रायड दमन का यही अर्थ करता है। इस अर्थ में दमन शब्द रोग है; उससे बचना।
लेकिन बुद्ध या पतंजलि जब दमन का उपयोग करते हैं, तो उन दिनों दमन का बड़ा और अर्थ था। उसका अर्थ थाः वासनाओं को समझना, वासनाओं का साक्षी होना, वासनाओं को देखना, उनकी समझ पैदा करना। उनकी प्रज्ञा और प्रत्यभिज्ञा से धीरे-धीरे वासनाएं शांत हो जाती हैं, दान्त हो जाती हैं, दम को उपलब्ध हो जाती हैं, सक्रिय नहीं रह जातीं।
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