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________________ शब्द : शून्य के पंछी खो जाओगे जब मनाजिरे-फितरत में अपने से बहुत करीब हो जाओगे . तुम टूटोगे एक तरफ और दूसरी तरफ तुम्हारा स्वभाव प्रगट होगा। इधर तुम खोने लगोगे, उधर तुम अपने पास होने लगोगे। खो जाओगे जब मनाजिरे-फितरत में अपने से बहुत करीब हो जाओगे जाग उठेगी रूह तुम तो सो जाओगे एक तरफ तो तुम सो जाओगे, गिर जाओगे, मिट जाओगे, दूसरी तरफ रूह जागने लगेगी। दांव पर लगाना होगा अपने को पूरा-पूरा। सस्ता सौदा नहीं होने वाला है। तुम मुफ्त चाहते हो आत्मा। कभी-कभी तुम कुछ-कुछ छोड़ते भी हो आत्मा के लिए कुछ दान करते हो, कुछ मंदिर बनाते हो, कुछ मस्जिद खड़ी करते हो-उससे भी काम नहीं होगा। आत्मा को पाने की एक ही शर्त है कि तुम अपने को गंवाने को राजी हो जाओ। जो अपने को गंवाने को राजी है, उसी को मैं संन्यस्त कहता हूं। उसी को बुद्ध ने भिक्खु कहा है। भिक्खु का अर्थ है : जो अपने होने की सारी संपदा को गंवाने को राजी है, भिखारी होने को तैयार है। जो कहता है, मैं कुछ भी न पकडूंगा। अब तक जो संपदा मानी, अपना तादात्म्य समझा, वह छोड़ता हूं। न-कुछ होने की तैयारी भिक्षु होना है। 'इन इतर प्रजाओं को जीतने की बजाय अपने आप को जीतना श्रेष्ठ है। अपने को दमन करने वाला और नित्य अपने को संयम करने वाला जो पुरुष है, उसकी जीत को न देवता, न गंधर्व और न ब्रह्मा सहित मार ही अनजीता कर सकते हैं।' सारे संसार को भी कोई जीत ले तो भी कुछ जीत नहीं होती। इन हारे हुए लोगों को जीत लेने में सार भी क्या हो सकता है? इन मरे हुए लोगों को जीत लेने में सार भी क्या हो सकता है? यह तो ऐसे ही है कि कोई जाए और मरघट पर झंडा गाड़ दे; क्या सार है? यह मरघट है, जिसको तुम संसार कहते हो। और जिनको तुम जीतने चले हो, ये मरे हुए लोग हैं। और मजा यह है कि तुमने अभी अपने को नहीं जीता और तुम दूसरे को जीतने चल पड़े। तुम जीत भी कैसे पाओगे? तुम जबरदस्ती किसी की छाती पर बैठ सकते हो, जीत न पाओगे। दूसरे की छाती पर बैठ जाना अनिवार्य रूप से दूसरे का हार जाना नहीं है। दूसरे की छाती पर तुम्हारा बैठ जाना अनिवार्य रूप से तुम्हारी जीत नहीं है। संसार में जिसे हम जीत कहते हैं, वह जबरदस्ती है। जबरदस्ती भी कहीं जीत हो सकती है? जिन्होंने अपने को जीता, उस जीत के साथ ही बहुतों के ऊपर भी उनकी जीत 1
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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