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________________ एस धम्मो सनंतनो है? मेरा बेटा है। बेटे के सौंदर्य पर तो मां का सौंदर्य निर्भर है, क्योंकि फल से तो ही वृक्ष पहचाना जाता है। बाप कहता है, तुम बड़े बुद्धिमान, बड़े होशियार। .. ____ मेरे पास लोग आते हैं, वे अपने बच्चों की तारीफ करते हैं। मैं चकित होता हूं। अगर सबके बच्चे इतने अदभुत हैं तो यह दुनिया बड़ी अदभुत हो जाए, लेकिन ये सब, बाद में सब खो जाते हैं। बच्चे अदभुत होने ही चाहिए, इसमें मां-बाप का स्वार्थ है। ये उनके सबूत हैं, प्रमाण हैं। फिर जब ये बच्चे अदभुत सिद्ध नहीं होते तो मां-बाप पीड़ित, परेशान होते हैं। इसलिए तुम मां-बाप को कभी भी प्रसन्न न पाओगे। एक झूठ दूसरी झूठ में ले जाती है। कोई मां-बाप प्रसन्न नहीं होता, बच्चे कुछ भी बन जाएं। ___मैंने तो एक कहानी सुनी है कि एक यहूदी महिला मरी; उसके मन में सदा से एक ही प्रश्न था कि अगर स्वर्ग गई तो मुझे मरियम से-जीसस की मां से पूछना है एक सवाल। जर्ब वह मरी, भाग्य से स्वर्ग पहुंची। उसने पहली ही बात जो पूछी दरवाजे पर, वह यह कि मुझे मरियम के पास जाना है, एक सवाल मुझे पूछना है। वह मरियम के पास ले जाई गई। मरियम ने कहा, मुझे पता है, यह सवाल तेरे मन में सदा से है; अब तू पूछ ही ले। ___ उसने कहा कि सवाल मेरा यह है कि संसार में मैंने कभी किसी मां-बाप को...जब बच्चे पैदा होते हैं, तब उनके गुणगान करते सुना है सदा; बच्चे जब पैदा होते हैं तो किसी मां-बाप को मैंने उनकी निंदा करते नहीं सुना। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और जीवन में उतरते हैं तो सभी मां-बाप को उनकी निंदा करते सुना है, तब मैंने कभी प्रशंसा करते नहीं सुना। इससे मैं बड़ी बेचैन और परेशान रही हूं। तुमने तो कम से कम अपने बेटे की प्रशंसा की होगी। तुम्हारा बेटा तो जीसस! मरियम, कहते हैं, उदास हो गई; उसने कहा, हमने तो सोचा था डाक्टर बनेगा। ____मां-बाप भी तुमसे जो कह रहे हैं, वह तुम्हारा सत्य नहीं है, वे उनकी आकांक्षाएं हैं। बाहर भी लोग तुमसे जो कह रहे हैं, वह भी तुम्हारा सत्य नहीं है, उनकी सुविधाएं हैं। और इन्हीं सब के आधार पर तुम अपनी प्रतिमा निर्मित करते हो कि तुम कौन हो। ये बाहर के चीथड़े-थेगड़े इकट्ठे करके, अखबारों की कतरनें लगाकर, जोड़कर तुम अपनी प्रतिमा बना लेते हो। इस प्रतिमा के कारण ही तुम्हें भीतर जाने में अड़चन होने लगती है-कैसे इसको छोड़ो! इसमें पूरा जीवन न्योछावर किया है, कैसे इसे तोड़ो! और आत्मविजय के लिए इसका टूट जाना जरूरी है। क्योंकि तुम अपने को तभी जान सकोगे, जब तुमने दूसरों से जो भी अपने संबंध में सुना है, वह सब तुम छोड़ दो; तभी तुम अपना साक्षात्कार कर सकोगे सीधा-सीधा; अपने आमने-सामने हो सकोगे। जाग उठेगी रूह तुम तो सो जाओगे सर चश्मए-जिंदगी में धो जाओगे 290
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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