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________________ एस धम्मो सनंतनो जाती है। कुछ देर चलती है, घंटे-घड़ी, फिर शांत हो जाते हैं, ठीक हो जाता है। फिर कुछ लोग हैं, छोटे बच्चों की तरह, खींची भी नहीं-खिंचती है-इधर तुमने खींची भी नहीं, मिट जाती है। बच्चा क्रोधित होता है, उछल-कूद लिया, शोरगुल मचा लिया, भूल गया। अभी घड़ीभर पहले दूसरे बच्चे से कह रहा था, जिंदगीभर तुम्हारा मुंह न देखूगा; और फिर पांच मिनट बाद दोनों साथ हाथ में हाथ डाले बैठे गपशप कर रहे हैं। बात आई-गई हो गई–पानी की तरह। फिर सत्पुरुष हैं, जिनको हम संत कहें-आकाश की तरह। कुछ खिंचता नहीं; मिटने का सवाल ही नहीं है। संतत्व बच्चों से भी ज्यादा निर्दोष है। जीसस से कोई ने पूछा, कौन तुम्हारे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के अधिकारी होंगे? उन्होंने चारों तरफ नजर डाली उस भीड़ में और एक छोटे बच्चे को उठाकर कंधे पर रख लिया और कहा, जो इस बच्चे की भांति होंगे। लेकिन बच्चे से भी आगे की बात है। बच्चे की भांति तो होना ही पड़ेगा, लेकिन बच्चे से भी ज्यादा निर्दोष होना पड़ेगा-आकाश की भांति। 'सुख मिले या दुख, पंडित विकार प्रदर्शित नहीं करते।' साधारण आदमी तो ऐसे जीता है, जैसे कभी कोई छिछला झरना देखा तुमने? कितना शोरगुल! गहराई कुछ भी नहीं, शोरगुल बहुत। कभी तुमने यह खयाल किया कि जितनी गहराई बढ़ जाती है, उतना ही शोरगुल कम हो जाता है। अगर नदी बहुत गहरी हो तो शोरगुल होता ही नहीं। अगर नदी बहुत-बहुत गहरी हो तो पता ही नहीं चलता कि चलती भी है! चाल भी इतनी धीमी और शांत हो जाती है। कह रहा है शोरे-दरिया से समंदर का सुकूत जिसका जितना जर्फ है उतना ही वो खामोश है जितनी जिसकी गहराई है, उतना ही वह खामोश है। तुम जब अपने भीतर जाओगे, तब तुम्हारी गहराई बढ़ेगी। तुम बाहर रहोगे तो तुम छिछले रह जाओगे, उथले रह जाओगे। बाहर रहने का अर्थ ही है कि तुम गहराई को छू ही न पाओगे। तुम छोटे-मोटे छिछले झरने रह जाओगे, तुम कभी सागर न हो पाओगे। और तुम्हारी संभावना थी प्रशांत महासागर हो जाने की; कि तुम एक ऐसी गहराई पा लो जो असीम है; जो शुरू तो होती है और अंत नहीं होती। कह रहा है शोरे-दरिया से समंदर का सुकूत जिसका जितना जर्फ है उतना ही वो खामोश है अपने को थोड़ा देखो; तुम्हारी जिंदगी कैसी ऊपर-ऊपर, सतह-सतह पर है! जरा-जरा सी बातें कितना दुख दे जाती हैं! जरा-जरा सी बातें तुम्हें कैसा मस्त कर जाती हैं! तुमने इंसान की फितरत पे कभी गौर किया मये-सरजोश अभी, दुर्दे-तहे-जाम अभी 16
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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