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स्थितप्रज्ञ, सत्पुरुष है
को कुछ छूता ही नहीं-अस्पर्शित!
इसलिए ठीक सत्पुरुष संसार से भयभीत नहीं होगा। संसार उसे कलुषित नहीं कर सकता। वह जंगल में जाकर छिप न जाना चाहेगा। अगर जंगल में पहले छिप भी गया होगा तो वापस लौट आएगा। क्या फर्क पड़ता है अब? जंगल हो कि बस्ती हो, मरघट हो कि बाजार हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। जिस दिन तुम ऐसे हो जाते हो कि बाहर के द्वंद्व तुम्हें भीतर खंडित नहीं करते...।
तुमने कभी खयाल किया? पानी पर लकीर खींचो, खिंचती है, लेकिन खिंचते ही मिट जाती है। रेत पर लकीर खींचो, खिंचती है, थोड़ी देर टिकती है; जब हवाएं आएंगी, कोई मिटाएगा, तब मिटेंगी। पत्थर पर लकीर खींचो, टिक जाती है; सदियों तक टिकी रहती है। आकाश में लकीर खींचो, खिंचती ही नहीं; मिटने का सवाल ही नहीं है।
इसी तरह के चार तरह के लोग होते हैं। पत्थर की तरह लोग, जिन पर कुछ खिंच जाता है तो मिटता ही नहीं, मिटाए नहीं मिटता। क्रोधित हो गए तो जिंदगीभर क्रोध को खींचते रहते हैं। किसी से दुश्मनी बन गई तो बन गई। अपने बच्चों को भी दे जाएंगे दुश्मनी वसीयत में, कि हम नहीं निपटा पाए, तुम निपटा लेना। हम नहीं मार पाए दुश्मन को, तुम मार डालना।
एक आदमी मर रहा था तो उसने अपने बेटों को अपने पास बुलाया और कहा कि मरते आदमी की इच्छा पूरी करो। तुम्हारा बाप-मैं मर रहा हूं। छोटी सी इच्छा है, वचन दे दो। बड़े बेटे तो जानते थे कि यह आदमी खतरनाक है। बाप हो तो क्या? यह जरूर कोई उपद्रव करवा जाएगा। और मरते को वचन दे दिया, पीछे पूरा न किया, वह भी ठीक न रहेगा। तो वे तो चुप रहे सिर झुकाए। छोटे बेटे को कुछ ज्यादा अंदाज न था बाप का; दूर पढ़ता था विश्वविद्यालय में। वह पास आ गया। उसने कहा कि आप जो कहें। बाप ने उसके कान में कहा कि बस, एक इच्छा रह गई है, कि जब मैं मर जाऊं तो मेरी लाश के टुकड़े करके पड़ोसियों के घर में डाल देना और पुलिस में रिपोर्ट कर देना कि जिंदा-जिंदा तो इन लोगों ने हमारे बाप को सताया ही, मरकर भी उसकी लाश के टुकड़े कर दिए। उसने अपने बेटे से कहा कि मेरी आत्मा स्वर्ग की तरफ जाती हुई बड़ी प्रसन्न होगी यह देखकर कि पड़ोसी थाने की तरफ बंधे चले जा रहे हैं।
लोग अपनी दुश्मनियां, अपनी घृणाएं, अपने क्रोध वसीयत में दे जाते हैं। खुद तो जीवनभर जलते ही हैं, पीढ़ी दर पीढ़ी दुश्मनियां चलती हैं, शत्रुता चलती है। पारिवारिक, पुश्तैनी दुश्मनियां चलती हैं। लकीर जैसे पत्थर पर खिंच जाती है। यह अधिकतम जड़ स्थिति है चैतन्य की। जैसे तुम बिलकुल ही सोए हुए हो, तुम्हें होश ही नहीं है।
फिर कुछ लोग हैं, जो रेत की तरह हैं-खिंचती है; आज खिंचती है, कल मिट
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