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________________ एस धम्मो सनंतनो जो पता चलाना चाह रहा है, वही अहंकार है। अहंकार तरकीब खोज रहा है अब। -वह कहता है ठीक, चलो माना; चलो कौन विवाद करे? स्वीकार! अब यह तो पता कर लो, क्या-क्या अहंकार है और क्या-क्या अहंकार नहीं है? सभी कुछ अहंकार है। तुम्हारे पास जो भी है, सभी कुछ अहंकार है। इसको मैं बेशर्त कहता हूं। क्योंकि शर्त बांधी कि अहंकार उसी शर्त में बच जाएगा; तुम जो बचाओगे, उसी में छिप जाएगा। तुम अगर कहोगे, प्रार्थना तो अहंकार नहीं? प्रेम तो अहंकार नहीं? तो फिर अहंकार उसी आड़ में बच जाएगा। ये अहंकार की तरकीबें हैं! आड़ खोजना। वह कहता है, प्रार्थना तो अहंकार नहीं! तो चलो, प्रार्थना के पीछे ही छिप जाएं; अब से प्रार्थना ही करेंगे। और तब तुम कहने लगोगे कि मैं परमात्मा का पूजक! परमात्मा का पुजारी! मेरी पूजा देखो, मेरे जैसा पुजारी और कोई भी नहीं। मेरा प्रेम देखो, मेरे जैसा प्रेमी तुम कहीं पाओगे? अहंकार वहीं खड़ा हो जाएगा। ___अगर मैंने तुमसे कहा, विनम्रता अहंकार नहीं है, तो विनम्रता के पीछे खड़ा हो जाएगा। अहंकार कहेगा, मुझसे विनम्र कभी कोई हुआ है! ___अहंकार ने ऐसी बहुत सी शरण-स्थलें खोज रखी हैं। किसी ने कहा दान, किसी ने कहा पूजा, किसी ने कहा नमाज, किसी ने कहा त्याग, किसी ने कहा उपवास, किसी ने कहा संन्यास-बस, अहंकार वहीं छिप जाएगा। अहंकार को अड़चन थोड़े ही है किसी चीज में छिप जाने से! कोई धन की ही थोड़े ही जरूरत है, निर्धन का भी अहंकार होता है। अमीर ही थोड़े ही अकड़कर चलते हैं, गरीब भी अकड़कर चलते हैं। अमीर अकड़कर चलता है धन के कारण, गरीब अकड़कर चलते हैं निर्धनता के कारण। वे कहते हैं, हम गरीब भले! क्या रखा है चांदी के ठीकरों में? गरीबी बड़ी नियामत है। शहर का आदमी अकड़कर चलता है, क्योंकि शहर का है; गांव का आदमी अकड़कर चलता है, क्योंकि गांव का है। जिनके पास बहुत बुद्धि है, वे अकड़कर चलते हैं कि हम बड़े बुद्धिमान हैं; जिनके पास बुद्धि नहीं, वे कहते हैं, क्या रखा है बुद्धि में? हम तो सीधे-सादे आदमी हैं। अकड़ के लिए कोई भी बहाना काफी है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं बेशर्त, तुम्हारे पास जो भी है, सभी अहंकार है। जिस दिन तुम्हारे पास जो भी है, सभी अहंकार की समझ तुम्हें आ जाएगी, अहंकार को बचने की जगह न रही; फिर अहंकार कहीं छिप न सकेगा। समझदारी भी शरण बन जाती है, नासमझी भी शरण बन जाती है। भोग तो शरण बनता ही है, त्याग भी शरण बन जाता है। त्यागियों का अहंकार देखते हो, कैसा दीप्त! कैसा चमकता हुआ! भोगी का अहंकार थोड़ा बोथला होता है, त्यागी के अहंकार में धार होती है। अभी-अभी 256
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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