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चरैवेति चरैवेति
उसकी तलवार पर धार रखकर आई है । भोगी तो थोड़ा डरता भी है, क्योंकि कहता है, भोगी हूं, कैसे कहूं? सारी दुनिया को पता है। त्यागी डरता भी नहीं; वह कहता है, त्यागी हूं । त्यागी बताना चाहता है— सारी दुनिया को पता चल जाए। भोगी तो थोड़ा छिपाता भी है। पापी तो डरता है, छिपाता है, किसी को पता न चल जाए; त्यागी बतलाता है, प्रदर्शनवादी हो जाता है। तुमने पापियों की शोभा यात्राएं देखीं ? महात्माओं की निकलती हैं, रथ निकलते हैं।
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बड़ी कठिनाई है। मगर कठिनाई को जड़ से पकड़ लो तो बड़ी नहीं है, जरा सी है। हां, जड़ से ही न पकड़ो तो फिर कठिनाई है।
तुम एक कमरे को साफ कर लोगे, अहंकार दूसरे कमरे में छिप जाएगा। भवन बड़ा है, इसमें बहुत कमरे हैं। फिर तो यह लुका-छिपी चलती रहेगी जन्मों-जन्मों। ऐसा ही तो चलता रहा है। एक तरफ से बचे, दूसरी तरफ से पकड़े गए। दूसरी तरफ से बचे तो तीसरी तरफ से पकड़े गए।
यह लुका-छिपी का खेल बंद करो। मैं तुमसे कहता हूं, सभी अहंकार है, क्योंकि तुम अहंकार हो । तुम्हारा सब अहंकार है - सब !
थोड़ा ज्यादा लगेगा; लगेगा मैं अतिशयोक्ति कर रहा हूं; जरा भी अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूं। अगर अहंकार से छूटना हो तो यही गहरी समझ चाहिए। और अगर यह तुम्हें दिखाई पड़ जाए, एक आह निकल जाएगी। अगर यह तुम्हें दिखाई पड़ जाए तो कुछ बचेगा तुम्हारे भीतर, जिसका तुम्हें अभी पता ही नहीं; जो अभी सब भांति छिपा है तुम्हारे अहंकार में, अहंकार के हटते ही प्रगट होगा ।
अस्तित्व तो होगा, तुम न होओगे। शुद्ध अस्तित्व होगा, तुम्हारी सीमा न होगी । आंगन की दीवालें गिर जाएंगी और आंगन आकाश हो जाएगा।
आंगन पूछता है, दीवाल का कौन सा हिस्सा है, जो मेरी सीमा बनाता है? जो हिस्सा सीमा बनाता हो, उसको गिरा दें। लेकिन आंगन की दीवाल पूरी की पूरी सीमा बनाती है; ऐसा कुछ नहीं है कि एक-आध हिस्सा सीमा बनाता है। अगर एक-आध हिस्सा सीमा बनाता है तो तुम वहां दरवाजा लगा देना; लेकिन इससे आंगन आंगन ही रहेगा। दरवाजे वाला आंगन हो जाएगा, आकाश नहीं हो जाएगा आंगन ।
सारी दीवालों को विदा करना होगा - बेशर्त !
समझ चाहिए। तुम मुझसे मत पूछो कि क्या अहंकार नहीं है ? क्योंकि मैंने कुछ भी कहा, अगर मैं कहूं, आत्मा...।
इसलिए तो बेचारे बुद्ध को आत्मा तक को इनकार कर देना पड़ा; क्योंकि उन्होंने देखा कि बहुत से लोग आत्मा के पीछे छिपे बैठे हैं। वे कहते हैं, हम आत्मा हैं; अहं ब्रह्मास्मि। आत्मा ही नहीं, मैं ब्रह्म हूं। अब क्या करोगे ?
उपनिषद के ऋषि ने जब कहा था, मैं ब्रह्म हूं, तो जोर ब्रह्म पर था। पीछे चलने वाले लोग जब दोहराते हैं, अहं ब्रह्मास्मि, तो जोर अहं पर होता है, मैं पर होता है ।
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