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________________ चरैवेति चरैवेति खत्म हो जाए जो दो- - चार कदम और चलो याद की रहगुजर जिस पर इसी सूरत से मुद्दतें बीत गई हैं तुम्हें चलते चलते कितने समय से चल रहे हो ! इसी रास्ते पर कितने जन्म बीते ! अगर सिर्फ एक बात की तैयारी हो - खो जाने की तैयारी हो - तो दो-चार कदम और ! खत्म हो जाए जो दो-चार कदम और चलो मोड़ पड़ता है जहां दश्ते - फरामोशी का जिससे आगे न कोई मैं हूं न कोई तुम हो प्रेम की खबर मिली यानी मौत की खबर मिली। प्रेम की खबर मिली यानी मौत पुकारा । और यह ऐसी मौत है, जिसमें मरकर कोई फिर पैदा नहीं होता । ने उस मौत की बात नहीं कर रहा हूं, जिसमें तुम मरकर कई बार पैदा हुए। उस मौत से तो कुछ खास फर्क पड़ता नहीं । चोले बदल जाते हैं, देह बदल जाती है, जरा-जीर्ण वस्त्रों की जगह नए वस्त्र मिल जाते हैं। उस मौत से तो कुछ मिटता नहीं । उस मौत से तुम नहीं मिटते; तुम तो बने ही रहते हो, तुम तो बचे ही रहते हो । जिसे तुमने अब तक मौत की तरह जाना - शरीर छिन जाते हैं, मन नहीं छिनता । मन तो. यात्रा पर चलता ही रहता है। 1 याद की रहगुजर जिस पर इसी सूरत से मुद्दतें बीत गई हैं तुम्हें चलते-चलते मैं तुम्हें एक ऐसी मौत का निमंत्रण दे रहा हूं, जो आखिरी है, जो आत्यंतिक है, अल्टीमेट है, चरम है, जहां शरीर का सवाल नहीं, जहां मन के मिटने का सवाल है; जहां तुम्हारे मिटने का सवाल है I इधर मैं मिटा बैठा हूं; मुझसे प्रेम करने का मतलब है, तुम्हारे मन में मिटने की आकांक्षा आ गई। मुझसे प्रेम का मतलब है कि पतंगा शमा की तरफ चला। मुझसे प्रेम का मतलब है, अब तुम अपने पंख जलाने चले; अब तुम अपने को मिटाने चले। इससे ही तो बहुत थोड़े से लोग मेरे पास आ पाएंगे। सदा ऐसा ही हुआ है; मिटने को बहुत थोड़े लोग तैयार हैं। मगर सौभाग्यशाली हैं वे जो मिटने को तैयार हैं, क्योंकि मिटकर ही जीवन का परम सत्य पाया जाता है। दूसरा प्रश्न : आपने कहा कि तुम अभी अहंकार से भरे हो । यह अहंकार है क्या ? और यह कैसे पता चले कि क्या-क्या अहंकार है और क्या-क्या अहंकार नहीं है? 255
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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