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एस धम्मो सनंतनो
कविता करो कि न करो। डाक्टरी करते हो? कोई मतलब नहीं हमें। तुम तो सीधा बता दो कि तुम कौन हो? __तो वह आदमी भी थोड़ा चकित होगा। वह कहेगा, फिर तो बताने का कोई उपाय न रहा। क्योंकि मैं कृत्य का जोड़ है। कोई कहता है, मैं चोर हूं, यह भी कृत्य का जोड़ है। कोई कहता है, मैं साधु हूं, यह भी कृत्य का जोड़ है। वह कहता है, इतने उपवास किए, त्याग किए, साधु हूं।
बुद्ध कहते हैं, जहां तक मैं है वहां तक संसार है, जहां अनत्ता का प्रारंभ होता है, अकृत का, और मैं नहीं, वहीं निर्वाण है। ___'जो श्रद्धा से रहित है, जो अकृत को जानने वाला है, जो संधि को छेदन करने वाला है।'
बहुत बार तुमसे मैंने कहा है संध्या के लिए; संधि बुद्धं उसे कहते हैं। दो विचारों के बीच, दो होने के बीच न-होने की संधि। दो अहंकारों के बीच खाली जगह, संधि।
'जो संधि को छेदन करने वाला है, जो हतावकाश है।'
जिसको अब संसार में आने की कोई जरूरत नहीं रह गई। जो अब वापस नहीं लौटेगा। लौटने का कोई कारण नहीं रहा। जिसने संधि पा ली, द्वार पा लिया। जिसने अकृत को जान लिया, जो मिट ही गया, उसे वापस कैसे लाओगे? जब तक हो, तब तक वापस आना है। जब तक मैं है, तब तक पुनर्जन्म है। ___ बुद्ध ने कहा है, जब तक तुम हो, तब तक बंधन है, क्योंकि तुम ही बंधन हो।
औरों ने कहा है कि बंधन संसार है; संसार छोड़ो, संन्यास स्वीकार करो। औरों ने कहा है, वासना बंधन है; वासना छोड़ो, निर्वासना हो जाओ। औरों ने कहा है, संसार के विपरीत मोक्ष है। बुद्ध ने कहा, संसार के विपरीत मोक्ष नहीं है, मैं के विपरीत मोक्ष है। और बुद्ध ने बड़ी गहरी बात कही कि मैं ही संसार है। मैं को छोड़ो; बाकी कुछ छोड़े काम न चलेगा। धन छोड़ोगे, त्याग पकड़ लोगे। संसार छोड़ोगे, मोक्ष पकड़ लोगे, क्योंकि तुम्हारे मैं की पकड़ मौजूद है, वह कुछ भी पकड़ लेगी। मैं को छोड़ो, पकड़ को तोड़ो।
मैं की मुक्ति नहीं है मोक्ष, मैं से मुक्ति मोक्ष है। 'और जिसने तृष्णा को वमन कर दिया है, वही उत्तम पुरुष है।'
स्वर्ग तो कुछ भी नहीं है छोड़कर छाया जगत की स्वर्ग-सपने देखती दुनिया
सदा सोती रही है मोक्ष तुम्हारा स्वप्न नहीं है। तुम लाख चेष्टा करके भी मोक्ष की कोई धारणा नहीं बना सकते। मोक्ष तुम्हारी कोई कामना नहीं है। तुम लाख विचार करके भी मोक्ष
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