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अश्रद्धा नहीं, आत्मश्रद्धा करते-करते, करते-करते एक चरम अवस्था आ जाती है, जिसके पार करने का उपाय नहीं रह जाता, गिर जाता हूं। उसी गिरने में निर्वाण घटता है।
इसलिए बुद्ध ने निर्वाण को अनात्मा कहा। करने तक आत्मा, अत्ता; फिर जब करना ही गिर गया, उसी के साथ मैं भी गिर गया – अनत्ता ।
बुद्ध के इस अनत्ता शब्द को समझने में बड़ी कठिनाई हुई । क्योंकि लोगों ने कहा, यह तो हद हो गई, ईश्वर भी नहीं और आत्मा भी नहीं ? तो फिर अब नास्तिकता में और क्या कमी रही ? यह तो परम नास्तिकता हो गई।
जैन को तो हिंदुओं ने बरदाश्त भी कर लिया। कम से कम परमात्मा को नहीं मानते, चलो कोई हर्जा नहीं, आत्मा को तो मानते हैं । पचास प्रतिशत आस्तिक हैं, चला लो। तो जैन चल गए - बहुत ज्यादा नहीं चले, लेकिन हिंदुओं ने बरदाश्त किया; फेंकने योग्य न मालूम पड़े- कि चलो एक कोने में बने रहेंगे।
लेकिन बुद्ध को तो बरदाश्त करना ही असंभव हो गया। क्योंकि इसने तो सारी बात ही छोड़ दी ; सौ प्रतिशत नास्तिक मालूम हुआ। पहले परमात्मा छीन लिया और आखिरी में अकृत कहकर आत्मा भी छीन ली; फिर अनत्ता बची, निर्वाण हुआ - जैसे दीया बुझ गया। यह आदमी तो महा नास्तिक है। इसलिए हिंदू बौद्धों से इतने नाराज रहे; क्षमा नहीं कर पाए बुद्ध को ।
'अंबेडकर ने इसका ही बदला लिया। जब हिंदुओं से उसका विरोध बढ़ता गया, बढ़ता गया, तो एक ही उपाय बचा। पहले वह सोचता था कि ईसाई हो जाए, मगर ईसाइयों से हिंदुओं का कोई खास विरोध नहीं है । यह कोई बात जंची नहीं उसे । कई बार सोचा, मुसलमान हो जाए, यह बात भी जंची नहीं, क्योंकि मुसलमानों से झगड़ा-झांसा हो, विरोध कुछ खास नहीं है । अंततः उसने तय किया कि बौद्ध होना चाहिए, क्योंकि इससे कभी हिंदुओं का कोई मेल का सवाल ही नहीं उठता। इससे बड़ा कोई विरोध ही नहीं हो सकता। सिर्फ बदला लेने के लिए अंबेडकर बौद्ध हुआ और हरिजनों के एक समूह को बौद्ध कर लिया।
यह राजनीति थी। बुद्ध धर्म लौटा भी तो न लौटने जैसा लौटा; गलत आदमी के हाथों लौटा। वैसे ही बुद्ध धर्म को भारी नुकसान हुआ; और अंबेडकर उसे वापस लाया तो और नुकसान हो गया। अब उसके लौटने के सब द्वार ही बंद हो गए।
लेकिन बुद्ध ने बड़ी परम सत्य की बात कही है। क्योंकि जब अकृत हो जाएगा तो मैं कैसे बचेगा? मैं तो कृत का जोड़ है। जो-जो हमने किया है, उसका ही जोड़ मैं है ।
तुमसे कोई पूछे, तुम कौन हो ? तो तुम कहते हो, मैं इंजीनियर हूं, डाक्टर हूं, चित्रकार हूं, कवि हूं। इसका मतलब, तुम यह यह करते रहे हो । अगर तुमसे कोई कहे कि तुम यह करने की बात छोड़ो, तुम सीधा बता दो कि तुम कौन हो ? क्या तुमने किया, यह हम पूछ ही नहीं रहे। तुम कविता करते हो ? हमें कुछ मतलब नहीं,
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