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एस धम्मो सनंतनो
राग से साधे अपनी चाल भीतर के संगीत को पकड़ने की जरूरत है। जो तुम्हें चाहिए, तुम्हें मिला हुआ है: जरा पहचान बनानी है। जो चाहिए, हो सकता है अस्तव्यस्त हो; थोड़ी व्यवस्था जमानी है। जो चाहिए, हो सकता है अराजक हो और तुम्हारी समझ में ही न आता हो कि यहां क्या करें; थोड़ी समझ वहीं बढ़ानी है। ___वीणा तुम्हारे भीतर है; तार अलग पड़े होंगे, वीणा अलग पड़ी होगी, खंड-खंड में होगी: खंडों को जोड़ना है। यह भी हो सकता है बहुत बार ऐसा मैं देखता हूं, बहुत लोगों के भीतर-वीणा खंड-खंड में भी नहीं है, वीणा बिलकुल तैयार है, उनकी अंगुलियों की प्रतीक्षा कर रही है, लेकिन उनकी अंगुलियां बाहर खोज रही हैं, बाहर टटोल रही हैं। और जितना जीवन में अंधकार बढ़ता जाता है, जितना जीवन में व्यर्थ का शोरगुल बढ़ता जाता है, उतनी बेचैनी से वे बाहर दौड़कर खोज में लग जाते हैं कि कहीं कोई संगीत, कहीं कोई सुराग, कहीं कुछ मिल जाए सहारा। और भीतर वीणा सड़ रही है तुम्हारी अंगुलियों की प्रतीक्षा में।
बुद्ध ने बड़ी अनुकंपा की कि तुम्हारे हाथ तुम्हारी तरफ मोड़ दिए। बुद्ध ने कहा, ले जाओ भीतर हाथ अपने, मुझे मत टटोलो। मेरी वीणा मैंने भीतर पाई है, तुम भी अपनी वीणा इसी तरह अपने भीतर पाओगे। इतना इशारा मुझसे समझो। तुम मेरे संगीत को बजता देखते हो? यह गुनगुनाहट तुम्हें सुनाई पड़ती है, जो मेरे भीतर हो रही है? यह मैंने अपने भीतर की वीणा पर अंगुलियों को चलाकर पाई है। तुम भी ऐसा ही करो।
बुद्ध पुरुषों के पीछे मत चलो। बुद्ध पुरुषों ने जो किया है, वह तुम भी करो।
अब यह बड़े मजे की बात है। अगर ठीक से समझो तो यही बुद्ध पुरुषों के पीछे चलना है। उनके पीछे न चलना, अपने भीतर जाना—यही बुद्ध पुरुषों के पीछे चलना है, क्योंकि ऐसे ही वे अपने भीतर गए। अगर तुम बुद्ध पुरुषों के पीछे चल पड़े-बुद्ध पुरुष किसी के पीछे नहीं चले-भूल हो गई।
बुद्ध ने किसी वेद पर श्रद्धा न रखी, किसी उपनिषद पर आसरा न रखा। बुद्ध ने अपना उपनिषद भीतर खोजा। अब अगर तुम बुद्ध के वचनों पर श्रद्धा रखकर बैठ जाते हो, धम्मपद तुम्हारा वेद हो जाए-बहुतों का हो गया है तो उलटी हो गई बात।
बोधिधर्म जब चीन पहंचा तो चीन के सम्राट व ने कहा कि मैंने बड़े शास्त्र छपवाकर बांटे हैं। उसने कहा, होली लगवा दो। सब शास्त्रों को होली में डाल दो। बोधिधर्म का एक बड़ा प्रसिद्ध चित्र है, जिसमें वह धम्मपद को फाड़कर आग में डाल रहा है। और बोधिधर्म से ज्यादा बुद्ध के निकट कौन? उतने करीब से कभी किसी ने बुद्ध को नहीं अनुगमन किया। और बुद्ध के वचनों को आग में डाल रहा है! क्योंकि बुद्ध ने ही सारे शास्त्रों को आग में डाल दिया था। ___ अब यह उलटी बात लगती है, लेकिन जरा भी उलटी नहीं है। तुम कहोगे, यह
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