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अश्रद्धा नहीं, आत्मश्रद्धा
कब किसका सहारा हुआ है ? इस संसार में स्वयं ही खोजना पड़ता है।
वस्तुतः सत्य से भी ज्यादा मूल्यवान खोज है। जो खोजता है ठीक से, जिसकी खोज सम्यक है, उसको सत्य तो मिल ही जाता है; वह तो परिणाम है।
लेकिन तुम खोज से बचना चाहते हो। तुम्हारी हालत उस छोटे बच्चे जैसी है, जो गणित करता है और किताब उलटकर पीछे लिखे उत्तर देख लेता है-इसको तुम श्रद्धा कहते हो—विधि नहीं करना चाहता, उधार उत्तर ले लेता है। लेकिन उधार उत्तर आ जाने से भी गणित हल नहीं होता। विधि तो जाननी ही पड़ेगी; यह उधार उत्तर व्यर्थ है। क्योंकि गणित का उपयोग यही था कि जब जीवन में प्रश्न तुम्हारे सामने खड़े हों तो तुम्हारे हाथ में विधि हो, ताकि तुम उत्तर खोज सको। अब यह उत्तर तुमने मुफ्त पा लिया। विधि से तुम चूक गए। गणित का अर्थ ही न रहा।
अब जीवन में जब भी कोई सवाल उठेगा-और जीवन में कोई किताब थोड़े ही है, जिसको उलटकर तुम पीछे लिखे उत्तर देख लोगे। स्कूल की किताबों में पीछे उत्तर लिखे होते हैं, जिंदगी की किताब में तो कहीं पीछे कोई उत्तर नहीं। उत्तर खोजने होते हैं; यहां उत्तर निर्मित करने होते हैं, अपने खून से सींचने होते हैं। यहां प्राणों को चुकाते हो तो उत्तर मिलते हैं।
एक बार अगर श्रद्धा की झूठ तुम्हें पकड़ गई, तुमने कहा, हम क्या करेंगे जानकर? बुद्ध पुरुषों ने जान लिया, कृष्ण और क्राइस्ट ने जान लिया, हम तो सिर्फ मान लेते हैं।
तुम्हारी श्रद्धा जानना नहीं है, मानना है। और सत्य माना नहीं जा सकता, केवल जाना ही जा सकता है। सत्य इतना सस्ता नहीं कि तुम मांग लो और मिल जाए।
खोजना पड़ेगा। दुर्गम पथ है, लंबी यात्रा है, निश्चित कुछ भी नहीं है। मिलेगा भी, यह भी कोई आश्वासन नहीं दे सकता। ज्यादा से ज्यादा कोई इतना ही कह सकता है कि मैं भी चला, मैं भी भटका, पहुंच गया; आशा करता हूं, तुम भी चलोगे, भटकोगे, गिरोगे, उठोगे, पहुंच जाओगे। आशा हो सकती है, आश्वासन नहीं हो सकता। आशीर्वाद कोई दे सकता है, आश्वासन कोई भी नहीं दे सकता। शुभकामना कोई कर सकता है कि प्रभु करे, तुम पहुंच जाओ; लेकिन पहुंचने के लिए कोई गारंटी नहीं दे सकता। .
सत्य कोई बाजार में बिकने वाली वस्तु नहीं है। और सत्य का कोई नियत घर नहीं है। जहां मैंने उसे पाया, वहां तुम उसे न पाओगे। क्योंकि तुम तुम हो, मैं मैं हूं। तुम्हारी राह थोड़ी अलग होगी, तुम कहीं और से चलोगे, क्योंकि तुम कहीं और खड़े हो। मैं जहां से चला था वहां से मैं चला था; तुम वहां से कभी भी न चलोगे। तुम्हारा चलना तो वहीं से शुरू होगा, जहां तुम खड़े हो; जहां तुमने अपने को पाया है। तुम्हारी राह मेरी राह कैसे होगी? मेरी राह तुम्हारी राह कैसे होगी? हां, तुम मुझसे कुछ सीख सकते हो; मानने से कुछ सार न होगा। तुम मेरे
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