________________
स्थितप्रज्ञ,
सत्पुरुष है
बहने लगे। संसारी भी भागा जा रहा है बाहर की तरफ — पूरब; तुम्हारा त्यागी भी भागा जा रहा है बाहर की तरफ - पश्चिम; धार्मिक व्यक्ति न तो पूरब जाता है, न पश्चिम; धार्मिक व्यक्ति भीतर की तरफ जाता है।
उलटे पतवार घुमाओ तो जानें
आंख बंद करता है, ताकि वस्तुओं का संसार खो जाए। और उसको जानने में लग जाता है, उसकी खोज में लग जाता है, जो मैं हूं। और वहां ऐसे हीरे हैं, वहां ऐसे मोती हैं, वहां ऐसे स्वर्ण की वर्षा है, कि अगर बाहर के स्वर्ण व्यर्थ हो जाएं, आश्चर्य नहीं ।
आश्चर्य तो तभी होगा कि जिसने भीतर झांका हो और उसे बाहर के मूल्य अभी भी मूल्य बने रहें। यह असंभव है। जिसने एक बार भीतर झांका, जिसने बड़ी संपदा में अनुभूति पा ली, बाहर की संपदाएं अपने आप थोथी और व्यर्थ हो जाती हैं । तुलना पहली दफा पैदा होती है। पहली बार रोशनी मिलती है तो तुम जान पाते हो कि बाहर अंधेरा है। इसके पहले छोड़ने की बात ही गलत है।
भीतर रोशन हो जाने का नाम सत्पुरुष हो जाना है।
'सत्पुरुष सभी छंद - राग आदि त्याग देते हैं । '
जब भीतर का छंद बजने लगे तो कौन बाहर के छंदों का उपद्रव लेता है ? जब भीतर की वीणा बजने लगे तो बाहर के सब स्वर शोरगुल हो जाते हैं।
श्री अरविंद ने कहा है कि जिसे पहले मैंने प्रकाश जाना था, भीतर के प्रकाश जानकर पाया कि वह तो अंधेरा था । और जिसे मैंने पहले जीवन जाना था, भीतर के जीवन को जानकर पाया कि वह तो मृत्यु का ही बसेरा था। जिसे मैंने पहले अमृत जाना था, भीतर झांककर पाया कि वह तो जहर था । मैं किसके धोखे में पड़ा था ? पहली बार जीवन में क्रांति का सूत्रपात होता है, जब तुम भीतर की तरफ झांकते हो।
उलटे पतवार घुमाओ तो जानें
चेतना की सहज धारा बाहर की तरफ है, क्योंकि तुम उनके बीच पैदा होते हो, जो सब बाहर की तरफ बहे जा रहे हैं। बच्चा तो अनुकरण करता है।
और इसलिए जीवन में बड़ी से बड़ी बात बुद्ध ने कही है, कल्याण मित्र खोज लेना है | कल्याण मित्र का अर्थ है : ऐसे लोग, जो भीतर की तरफ बहे जा रहे हैं, जिन्होंने उलटी पतवार चलानी शुरू की। उनके पास बैठकर शांति में, मौन में, उनके चप्पुओं की भीतर जाती आवाज को सुनकर तुम्हारे भीतर भी भीतर जाने का भाव उदित होगा। तुम्हारे भीतर भी कोई सोई आकांक्षा जगेगी।
जैसे किसी पिंजड़े में बंद पक्षी को, आकाश में उड़ते पक्षी को देखकर उड़ने की आकांक्षा का जन्म होता है। पंख फड़फड़ाता है। याद आती है, मैं भी उड़ सकता था। यह आकाश की नीलिमा मेरी भी हो सकती थी । यह ओर-छोर हीन विस्तार
11