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________________ कुछ खुला आकाश! हुई आग होती है विचारशक्ति की; राख विचारों की ऊपर नहीं होती, अंगारा दमकता ठीक वैसा ही इच्छाओं के और इच्छाशक्ति के संबंध में भी है। जितनी ज्यादा इच्छाएं, उतनी कम इच्छाशक्ति। जितनी कम इच्छाएं, उतनी ज्यादा इच्छाशक्ति। अगर तुमने सारी इच्छाएं छोड़ दी तो तुम जो इच्छा करोगे, वह इच्छा करते ही पूरी हो जाएगी। इच्छाशक्ति इतनी बड़ी हो जाएगी। जब तुम इच्छा न करोगे, तब तुम्हारे पास इतनी विराट ऊर्जा होगी कि करते ही पूरी हो जाएगी। अब यह जीवन का राज है : जो करना चाहते हैं इच्छा पूरी, उनके पास इच्छाशक्ति नहीं है, जो नहीं करना चाहते, उनके पास है। मैंने सुना है, एक अमीर आदमी के पास एक गरीब आदमी मिलने गया। वह अमीर आदमी ने अपने पास एक सोने का पीकदान रखा हुआ था। लाखों रुपए का होगा; उस पर हीरे जड़े थे। और वह उसमें बार-बार पान की पीक थूक रहा था। वह गरीब को बड़ा दुख हुआ, उसे बड़ा क्रोध भी आया। जिंदगीभर परेशान हो गया वह लक्ष्मी की तलाश करते-करते। आखिर उससे न रहा गया, उसने एक लात मारी पीकदान में और कहा, ससुरी! यहां थुकवाने को बैठी है। हम जिंदगीभर पीछे पड़े रहे, प्रार्थना की, पूजा की, सपने में भी दर्शन न दिए। __वह अमीर आदमी हंसने लग गया। उसने कहा, ऐसी ही दशा पहले हमारी भी थी। जब तक हम भी पीछे लगे फिरे, कुछ भी हाथ न आया। जब से हम मुड़ गए और जब से हम पीछे फिरना छोड़ दिए, चीजें अपने आप चली आती हैं। तुम्हारी सब इच्छाएं जब तुम छोड़ दोगे, अचानक तुम पाओगे, तुम्हारे पास विराट ऊर्जा है। तब तुम इच्छा न करना चाहोगे और इच्छाशक्ति होगी। जब तुम विचार न करना चाहोगे, तब विचारशक्ति होगी। जब तुम जीना न चाहोगे, तब तुम्हारे पास अमर जीवन होगा। जब तुम मिटने को राजी होओगे, तुम्हें मिटाने वाली कोई शक्ति नहीं। जब तुम सबसे पीछे खड़े हो जाओगे, तुम सबसे आगे हो जाओगे। जीसस ने कहा है, जो यहां सबसे पीछे हैं, वे मेरे प्रभु के राज्य में प्रथम हो जाते हैं। और लाओत्सू ने कहा है, मुझे कोई हरा न सकेगा, क्योंकि मुझे जीत की कोई आकांक्षा नहीं है। ऐसी विजय अंतिम हो जाती है, परम हो जाती है। जीवन का यह सूत्र बड़ा बहुमूल्य है। जिसने इसे जाना, उसने बहुत कुछ जाना। और जो इसे चूकता रहा, वह जीवन के आसपास चक्कर मारता रहेगा भिखमंगे की तरह, वह कभी इस महल में प्रवेश न पा सकेगा। बालभर अवकाश होना चाहिए कुछ खुला आकाश होना चाहिए 219
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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