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एस धम्मो सनंतनो
बीज की फिर शक्ति रुकती है कहां
भाव की अभिव्यक्ति रुकती है कहां जरा सी जगह चाहिए तुम्हारे भीतर–अवकाश! फिर बीज तुम्हारे भीतर पड़ा है, टूटने लगता है; विराट उससे जन्मने लगता है। लेकिन तुम्हारे विचारों की पर्ते उस बीज को नहीं टूटने देतीं। तुम्हारी इच्छाओं की पर्ते उस बीज को नहीं टूटने देती। जगह ही नहीं है कि बीज अंकुरित हो सके। तुम इतने भरे हो!
बस, थोड़ा खाली करो अपने को। खाली करने की कला ध्यान है। विचार से, वासना से खाली करने की कला ध्यान है।
जैसे ही तुम खाली होते हो, तुम्हारा बीज टूटता है और तुम्हें भरने लगता है। तब भराव भीतर से आता है। तब भराव अपना होता है, आत्मा का होता है। उस भराव को फिर तुमसे कोई छीन न सकेगा; वह तुम्हारा है।। अभी जिससे तुमने भरा है, वह सब उधार है और पराया है।
बालभर अवकाश होना चाहिए कुछ खुला आकाश होना चाहिए बीज की फिर शक्ति रुकती है कहां भाव की अभिव्यक्ति रुकती है कहां
आज इतना ही।
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