________________
एस धम्मो सनंतनो
निकलो। महीनेभर बाद निकला सम्राट। उस फकीर ने फिर पूंछ पकड़ी, लेकिन घिसट गया। सम्राट हैरान हुआ। उस बुजुर्ग से ईर्ष्या हुई उसे अब, कि यह आदमी बड़ा अदभुत जानकार है; न देखा इस आदमी को, न गया, बस बैठे-बैठे इतनी बात बता दी और कारगर हो गई! पूछा कि कैसे यह हुआ?
उसने कहा, सीधी सी बात है। बेफिक्री उसकी मस्ती है, उसकी ताकत है; जरा सी फिक्र पैदा कर दी, मारा गया। अब फिक्र लगी रहती है उसको, दिन में दो-चार दफे देख लेता है घड़ियाल की तरफ घंटाघर की-छह तो नहीं बज गए। क्योंकि चूक जाए, कहीं भूल जाए। कभी समय की फिक्र न की थी, बेसमय जीया था। तो जरा सी फिक्र डाल दी, चौबीस घंटे खटका बना रहता है। रात में सोता है तो भी खटका बना रहता है कि छह बजे जला देना है, एक रुपया मिलना है। और रुपए मिलने लगे तो गिभंती करने लगा, जोड़ने लगा कि एक रुपए में तो महीने का काम हो जाएगा, बाकी तो उनतीस रुपए बच जाएंगे। साल में कितने होंगे, दस साल में कितने होंगे। महल बना लूंगा। पहले शांति से सोया रहता था, सपने भी न आते थे, अब बड़े सपने आने लगे। मार दिया जरा सी तरकीब से।
सम्राट भी ईर्ष्यालु हो जाता है। ईा ही करनी हो तो उनकी करना, जिनकी सारी ईर्ष्या खो गई। मगर ईर्ष्या में कुछ बुरा नहीं है। गलत की ईर्ष्या मत करना; क्योंकि गलत की ईर्ष्या करोगे तो गलत ही हो जाओगे। शुभ की ईर्ष्या करना, मंगल की ईर्ष्या करना, तो जिसकी ईर्ष्या करोगे, उसी तरफ यात्रा शुरू हो जाती है। ईर्ष्या तो दिशासूचक है-कहां जाना चाहते हो, क्या होना चाहते हो! ___ ईर्ष्या में कुछ भी बुरा नहीं है। द्वेष में भी कुछ बुरा नहीं है। किसी चीज में कुछ बुरा नहीं है। बस, ठीक दिशा में सारी चीजों को संयोजित करने की बात है। कांटे भी फूल हो जाते हैं, बस जरा सी समझ चाहिए। फूल भी कांटे हो जाते हैं, बस जरा सी नासमझी काफी है।
आखिरी प्रश्न:
आप विचार और विचारशक्ति में जैसा भेद करते हैं, क्या वैसा ही भेद इच्छा और इच्छाशक्ति में भी तो नहीं है?
नि श्चि त है। जब तक विचार हैं, तब तक तुम्हारे पास विचार की शक्ति नहीं।
विचारों की भीड़ है, विचार की शक्ति नहीं। क्योंकि विचार की शक्ति तो तभी पैदा होती है, जब विचारों की भीड़ विदा हो जाती है। तब तुम्हारे भीतर शुद्ध ऊर्जा होती है विचार की। विचारों से ढंकी नहीं होती, उघड़ी होती है; जलती
218