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________________ कुछ खुला आकाश! और तब ईर्ष्या भी शभ हो गई. सार्थक हो गई। तब तुम्हारे जीवन में एक भभक आ जाएगी। तब तुम्हारा सारा जीवन एक नए ही आंदोलन से आपूरित हो जाएगा। तुम्हारी सारी उदासी टूट जाएगी, तुम्हारी सारी शिथिलता टूट जाएगी-कोई झकझोर गया। एक तूफान आया और गुज़र गया। जो तुम हो सकते थे, कोई हो गया; तुम क्यों न हो पाए? ___ लेकिन तुम्हारी ईर्ष्या गलत रास्तों से चलती है। कोई कार में से गुजर गया और तुम्हें ईर्ष्या पकड़ गई कि ऐसी कार तुम्हारे पास भी होनी चाहिए। हो भी जाएगी तो बहुत कुछ न होगा। ईर्ष्या ही करनी हो तो बुद्धों से करना। किसी के वस्त्र देख लिए, ईर्ष्या हो गई। किसी का मकान देख लिया, ईर्ष्या हो गई। बना भी लोगे मकान तो कुछ न होगा। जिसका देखकर तुम्हें ईर्ष्या हुई है, जरा उसकी तरफ तो देखो, उसे क्या हो गया है? कुछ भी नहीं हुआ। हो सकता है, तुमसे भी ज्यादा दीन-हीन अवस्था हो। ईर्ष्या ही करनी हो तो उससे करो, जिसकी सारी ईर्ष्याएं खो गयीं। यह हो सकता है कि तुम जिसका मकान देखकर ईर्ष्या कर रहे हो, वह तुम्हारा स्वास्थ्य देखकर ईर्ष्या कर रहा हो। सम्राट भी ईर्ष्या से भर जाते हैं। मैंने सुना है, एक सम्राट का हाथी निकलता था। और एक जवान आदमी ने-एक फकीर था और एक मजार पर लेटा रहता था—उसकी पूंछ पकड़ ली और हाथी को रोक लिया। सोचो उस गरीब सम्राट की हैसियत! उसके प्राण कंप गए, सारा साम्राज्य मिट्टी हो गया। अचानक उस फकीर ने सम्राट को नपुंसक कर दिया। बड़ा दुखी हुआ। घर तो लौट आया, लेकिन बड़ा उदास हुआ। एक नंगा फकीर! उसने किसी बुजुर्ग को पूछा कि क्या करें? कुछ करना पड़ेगा। यह तो निकलना बंद हो जाएगा। मैं गांव में निकलूंगा तो शर्म मालूम पड़ेगी। मैं हाथी पर हूं भला, मगर इसका क्या मतलब रहा? कोई आदमी पूंछ पकड़ ले हाथी की, हाथी न सरक सके, हम ऊपर अटके रह गए; महावत था, कुछ न कर पाया। उस बुजुर्ग ने कहा, घबड़ाओ मत। तुम ऐसा करो, खबर भेजो उस फकीर को कि तुझे एक रुपया रोज मिलेगा, सिर्फ मजार पर रोज शाम को छह बजे दीया जला दिया कर। फकीर ने सोचा, यह तो अच्छा ही है। अभी मांगकर खाना पड़ता था, यह झंझट ही मिटी मांगकर खाने की, एक रुपया मिल जाएगा। उन दिनों एक रुपया बड़ी बात थी, जागीर थी। एक रुपया तो एक महीने के लिए काफी था। उसने कहा कि यह तो बड़ा सौभाग्य हो गया। और कुल काम इतना है कि छह बजे दीया जला देना है। उसी मजार पर तो पड़े ही रहते हैं, तो उसमें झंझट भी क्या? उठकर जला देंगे। महीनेभर बाद, उस बुजुर्ग ने कहा, तुम फिर निकलना हाथी पर। महीनेभर मत 217
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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