________________
एस धम्मो सनंतनो
भाव अनुभव करोगे।
उपयोग करना सीखो, जहर भी औषधि बन जाता है। और ऐसे तो औषधि भी जहर हो सकती है। निर्भर करता है, कैसे तुम उपयोग करते हो। कितनी तुम्हारी समझ है ! कितनी पैनी दृष्टि से तुम जीवन को देखते हो !
तो घृणा का एक तो अर्थ है : दूर होने की आकांक्षा, किसी से दूर होने की आकांक्षा ।
घृणा का दूसरा अर्थ हैः किसी को नष्ट करने की आकांक्षा । जिससे तुम घृणा करते हो, उसका तुम विनाश करना चाहते हो। यह भी सृजन का अनिवार्य हिस्सा है। क्योंकि जिससे तुम प्रेम करते हो, उसे तुम शाश्वतता देना चाहते हो, अमरत्व देना चाहते हो। जिसे तुम प्रेम करते हो, उसे तुम सब तरह से निर्माण देना चाहते हो; उसे तुम ऐसा बनाना चाहते हो, उस जैसा कोई दूसरा न हो ।
प्रेम में तुम्हारी सृजनात्मकता जगती है और घृणा में तुम्हारा विध्वंस जगता है। दोनों जरूरी हैं, क्योंकि किसी भी महत्वपूर्ण निर्माण में, किसी भी बड़े सृजन में विध्वंस का उपयोग करना पड़ेगा। एक नया मकान बनाना हो, पुराना गिराना पड़ता है। नए के निर्माण के लिए पुराने का विध्वंस करना पड़ता है। अगर किसी को स्वास्थ्य देना हो तो बीमारी का विनाश करना पड़ता है।
अब सवाल यह है कि कैसा तुम उपयोग करोगे! तुम्हें अगर समझ हो तो तुम विध्वंस की धारणा का भी उपयोग निर्माण में कर सकते हो, सृजन में कर सकते हो। और अगर तुम पागल हो जाओ तो तुम निर्माण की क्षमता का उपयोग भी विध्वंस के लिए कर सकते हो — जैसा कि हो रहा है ।
लोग एटम बम बनाते हैं, बड़ा महत्वपूर्ण सृजन है; लेकिन बनाते इसलिए हैं कि दुनिया को नष्ट कर दें। ऐसा लग रहा है कि लोगों ने सृजन की क्षमता को विनाश की तरफ सेवा में लगा दिया है। होना उलटा चाहिए कि तुम्हारी सारी विनाश की क्षमता सृजन की दिशा में लग जाए।
अस्तित्व में तो सभी सार्थक है । तुम्हारी समझ अगर अधूरी हो, अंधी हो, भूलचूक भरी हो, तो बड़ी चूक हो जाएंगी।
ऐसा ही ईर्ष्या और द्वेष के साथ है। ईर्ष्या का क्या अर्थ होता है ? इसका अर्थ होता है कि किसी के पास है और मेरे पास नहीं ।
एक बुद्ध तुम्हारी राह से गुजर जाता है, ईर्ष्या नहीं होती — होनी चाहिए; और तब ईर्ष्या शुभ हो जाएगी। प्राण ईर्ष्या से नहीं भर जाते - भरने चाहिए। कोई बुद्ध हो गया ?
लोग आए भी, बैठे भी, उठ भी खड़े हुए, तुम जगह ही खोजते रहे? वसंत आया भी, गया भी, तुम सोचते ही रहे - कहां आशियां बने, कहां न बने ? बुद्धों को देखकर ईर्ष्या पैदा नहीं होती? होनी चाहिए।
216