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________________ कुछ खुला आकाश! उपयोग नहीं दिखाई पड़ता, तो समझना कि तुम कहीं भूल पर हो। और थोड़ा गहरे खोजना। क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषरहित विनीत सरल है अगर क्रोध न हो, करुणा की सब शोभा ही नष्ट हो जाती है। अगर अंधेरी रात हो तो ही सुबह का आनंद है। जीवन में जो भी है, उसका विपरीत पृष्ठभूमि का काम करता है। घृणा है, घृणा का क्या अर्थ होता है? शब्द की बहुत फिक्र मत करो, शब्दकोश से मुझे कुछ लेना-देना नहीं। घृणा का अर्थ क्या होता है? अस्तित्वगत भाषा में घणा का क्या अर्थ होता है? इतना ही अर्थ होता है कि तुम दूसरे से दूर जाना चाहते हो; और कुछ अर्थ नहीं होता। तुम दूसरे के पास नहीं जाना चाहते। विकर्षण! तुम दूसरे से हटना चाहते हो, दूर हटना चाहते हो-एक अर्थ। अगर दूसरे से दूर हटने की यह संभावना न हो तो प्रेम की संभावना समाप्त हो जाएगी। जब तुम सारे संसार से दूर हटते हो, तब कहीं तुम एक व्यक्ति के पास पहुंच पाते हो। सोचो कि घृणा समाप्त हो जाए, उसके साथ ही प्रेम भी समाप्त हो जाएगा। तो घृणा प्रेम के लिए सीढ़ी है। हां, अगर तुम घृणा पर ही रुक गए तो चूक हो गई। वह तुम्हारी गलती है, उससे घृणा का कोई लेना-देना नहीं। घृणा कुल इतना ही कहती है कि किसी से दूर होने का मन होता है। प्रेम इतना ही कहता है, किसी के पास होने का मन होता है, किसी को पास लेने का मन होता है-इतने पास कि सब दूरी मिट जाए, कोई फासला न रह जाए, कोई चीज बाधा न बने, कोई अंतराल न रह जाए; ऐसी कामना प्रेम है। और किसी से दूर होने का मन होता है, ऐसा होता है कि इतना फासला हो जाए कि कोई दूसरे चांद-तारों पर और मैं दूसरे चांद-तारों पर; फासला इतना हो जाए कि कभी दुबारा पास आने का मौका ही न आए, सारा अस्तित्व बीच में आ जाए-यह तो पास आने का ही हिस्सा हुआ। हां, अगर तुम इसमें ही उलझ गए और पास आना भूल गए और घृणा को ही जीवन का सारा धंधा बना लिया; और इस कला में इतने पारंगत हो गए कि यह भूल ही गए कि यह सीढ़ी थी, यह बैठने का मकान नहीं था, इस पर बैठकर नहीं रह जाना था, तो खतरा हुआ। अगर तुम्हें याद रहा तो तुम पाओगे कि शत्रुता भी मित्रता के लिए अनिवार्य सीढ़ी है। और घृणा प्रेम की अनिवार्य पृष्ठभूमि है। और जिस दिन तुम प्रेम के सुगंध को, सुवास को उपलब्ध होओगे, उस दिन तुम ऐसा अनुभव न करोगे कि घृणा का कोई उपयोग न था; उस दिन तुम घृणा के प्रति भी अनुग्रह का 215
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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