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एस धम्मो सनंतनो
आनंद को बांटो, ध्यान को बांटो। और दूसरी ओर ध्यान के अर्जन को गुप्त रखने की, छिपाकर रखने की बात भी कही जाती है।
निश्चित ही दोनों बातें कही जाती हैं, क्योंकि दोनों बातें सही हैं। उनमें विरोध
नहीं है; विरोध दिखता हो तो केवल आभास है। ध्यान मिले तो बांटो, लेकिन ध्यान जब तक न मिला हो, तब तक संम्हालो और छिपाओ। होगा तब तो बांटोगे! जल्दी बांटने की मत करना।
अक्सर नहीं होता तो भी बांटने की आकांक्षा पैदा हो जाती है। उपदेश देने का बड़ा रस है। किसी को समझाने में ज्ञानी होने का मजा आ जाता है। किसी को बताने में-चाहे तुम्हें पद्म हो या न हो-थोड़े क्षण को आभास होता है कि तुम्हें पता है।
इसीलिए तो दुनिया में सलाह इतनी दी जाती है, लेता कोई नहीं। कितने उपदेश दिए जाते हैं, कौन लेता है? उपदेशक पीछे घूमते हैं तुम्हारे; पकड़-पकड़कर समझाते हैं। उपदेशकों से बचकर निकलना मुश्किल है। उन्होंने सब राह, रास्ते रोक रखे हैं। जहां से जाओ, वहीं वे मौजूद हैं; मुक्तहस्त ज्ञान बांटते हैं, मुफ्त देने को तैयार हैं। मुफ्त ही देने को तैयार नहीं, साथ में कुछ प्रसाद भी देने को तैयार हैं—लो भर! फिर भी कोई लेने वाला दिखाई नहीं पड़ता। __ध्यान रखना, बांटना कहीं अहंकार से न निकलता हो; करुणा से निकले तब बात और। पर करुणा तो तब होगी, जब ध्यान सघनीभूत होगा, जब ध्यान एक मेघ बन जाएगा। बुद्ध ने इसलिए उसे मेघ-समाधि कहा है। जब एक घने मेघ की तरह, सघन मेघ की तरह वर्षा से भरे हए तम हो जाओगे—उसके पहले तो बंद-बंद मेघ इकट्ठी करता है। इकट्ठा हो जाए तो ही बरस सकता है। ____ मां गर्भवती हो, नौ महीने तक गर्भ को सम्हाले, तो ही जन्मदात्री हो सकती है। बिना गर्भवती हुए, बिना नौ महीने सम्हाले, बच्चों को जन्म देने की कल्पना करने में मत उलझ जाना। इससे धोखा पैदा होगा। इससे कोई और धोखे में न पड़ेगा, तुम्हीं धोखे में पड़ोगे। और खतरा है कि कहीं तुम दूसरों के जीवन को कोई नुकसान न पहुंचा दो। क्योंकि यह बड़ी बारीक, बड़ी नाजुक बात है। इसे तो जब तुम ठीक से जान ही लो, तभी किसी को जनाना। जब तुम्हारे पैर इस भूमि पर मजबूत जम जाएं, जब तुम्हारी जड़ें इस भूमि में पूरी फैल जाएं, तभी तुम किसी को समझाना।
तो बुद्ध ठीक कहते हैं, बांटो। पर हो, तब बांटोगे न! सूफी फकीर भी ठीक कहते हैं कि सम्हालो। क्योंकि सम्हालोगे तभी तो होगा न!
सम्हालना पड़ेगा बहत दिन, वर्ष-वर्ष, जन्म-जन्म: जब तुम्हारे भीतर घना हो जाएगा तो बरसेगा। जरूरत है पहले सम्हालने की; पहले तुम्हारे पास हो, तुम्हारा दीया जलता हो तो तुम किसी और का दीया जलाने जाना। अपना दीया जलता ही
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