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एस धम्मो सनंतनो
को भी संध्या नाम दिया है। लोग कहते हैं, संध्या कर रहे हैं। संध्या करने का अर्थ भी नहीं समझते। संध्या करने का अर्थ है : किन्हीं दो अतियों के बीच में, मध्य को खोज रहे हैं। किन्हीं दो गतियों के बीच में विराम को खोज रहे हैं। सूरज ढल गया, रात नहीं हुई; प्रकाश जा चुका, अंधकार उतरने-उतरने को है-बस जरा सी देर है, क्षणभर में चूक जाओगे।
प्रेम का क्षण बहुत बारीक क्षण है। तुम श्वास से शुरू करो, अगर प्रेम को पकड़ना हो। श्वास का अभ्यास करो; जहां श्वास ठहर जाती है, वहीं अपनी आंखों को गड़ाओ। और तुम बहुत चकित होओगे, अगर तुम उस विराम को पकड़ने में सफल हो गए, श्वास ज्यादा देर तक ठहरी रहेगी। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है, कई क्षण निकल जाएंगे, श्वास ठहरी रहेगी। कई मिनट निकल सकते हैं, कई घंटे भी निकल सकते हैं, और श्वास ठहरी रहे।
अगर तुम्हारा ठीक-ठीक हाथ पड़ जाए विराम पर, अगर तुम्हारा संयोग सध जाए विराम से, तो तुम एक ऐसे पारलौकिक दशा में लीन हो जाओगे कि खबर ही न रहेगी कि श्वास लेनी है; सब ठहर जाएगा। उस ठहरी दशा को ही हम समाधि, सतोरी का क्षण कहते हैं। __ जब ऐसी दशा तुम्हें स्वाभाविक हो जाए कि जब तुम्हारी मर्जी हो, आंख बंद की और उतर गए, सीढ़ियां साफ हो जाएं, द्वार खुला रह जाए-तुम सिद्ध हो गए। फिर तुम बाहर जाओ तो भी तुम बाहर नहीं जा सकते, तुम भीतर जाओ तो भी भीतर नहीं जा सकते, क्योंकि तुम खो गए। तुम ही न बचे तो बाहर-भीतर भी गया। अब तो जो बचा, वही परमात्मा है।
कूचए-जानां की मिलती थी न राह उस प्यारे का मार्ग न मिलता था।
कूचए-जानां की मिलती थी न राह
बंद की आंखें तो रस्ता खुल गया आंख का बंद हो जाना—अर्थ क्या है? आंख तो तुम बहुत बार बंद करते हो, रास्ता कहां मिलता है? आंख तो तुम अभी बंद कर सकते हो, रास्ता कहां मिलता है? तो जरूर इस आंख से कुछ मतलब न होगा। आंख तभी बंद होती है तुम्हारी, जब कोई कामना नहीं रहती। ___ प्रार्थना भी एक तरह की कामना है, वहां भी मांग जारी है। परमात्मा के मंदिरों में बैठे लोगों के प्रार्थना के बाद फैले हुए हाथ भी वासना के ही हाथ हैं। परमात्मा के सामने झुके हुए सिर भी वासना के ही झुके हुए सिर हैं—कुछ मांग जारी है। अब बाहर का धन नहीं मांगते, भीतर का धन मांगते हैं—मांग जारी है। __जहां तक मांग जारी है, वहां तक आंख खुली है। जहां तक तुम कुछ सोच रहे हो, मिल जाए, वहां तक आंख खुली है। जहां तुमने सोचना छोड़ा कि कुछ मिलने
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