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एस धम्मो सनंतनो
दशा का। प्रेम ठिठकता है, परमात्मा ठहरा हुआ है। प्रेम क्षणभर को परमात्मा बनता है, परमात्मा सदा को प्रेम है। प्रेम दो छोरों के बीच में एक थोड़ा सा पड़ाव है, थोड़ी सी राहत, थोड़ा सा विश्राम, विराम-चिह्न। परमात्मा पूर्ण विराम है-दोनों के पार।
परमात्मा की अवस्था में न तो कुछ बाहर है फिर, न कुछ भीतर है। बाहर और भीतर दोनों परमात्मा में हैं। परमात्मा के बाहर कुछ भी नहीं है, इसीलिए परमात्मा के भीतर कुछ है, कहने का कोई अर्थ नहीं; परमात्मा ही है। बस, परमात्मा है; बाहर-भीतर का कोई अर्थ नहीं रह जाता। उसके बाहर कुछ नहीं है तो भीतर कैसे कुछ होगा? यह द्वंद्व गिर जाता है।
प्रेम में भी यह द्वंद्व क्षणभर को ठहरता है, इसलिए प्रेम में थोड़ी सी झलक परमात्मा की है। बस, इस जगत में परमात्मा की झलक देने वाली घड़ी प्रेम की घड़ी है।
इसलिए तुम चकित होओगे, अगर मैं यह कहं कि प्रार्थना भी परमात्मा के उतने निकट नहीं है जितना प्रेम; क्योंकि प्रार्थना फिर एक अति हो गई। बाहर से छुटे तो भीतर को पकड़ लिया; बाहर से भागे तो भीतर को पकड़ लिया। जरूरी है, भीतर को पकड़ना पड़ेगा बाहर से भागने के लिए। एक अति से बचने के लिए दूसरी अति पकड़नी पड़ेगी। और अभी दोनों के बीच में तुम ठहर न सकोगे। दोनों के बीच में ठहरने का तो उपाय, दोनों के पार हो जाना है।
लेकिन जब तुम पार हो जाओगे, तब तुम पाओगे, अरे! प्रेम का जो क्षणभर के लिए विराम आया था, परमात्मा वैसा ही है— शाश्वत होकर, सनातन होकर। प्रेम में जिसकी बूंद मिली थी, परमात्मा उसी का सागर है।
वासना में भी तुम हो, प्रार्थना में भी तुम हो। वासना में दृष्टि बाहर की तरफ जा रही है, प्रार्थना में दृष्टि भीतर की तरफ जा रही है। प्रेम के क्षण में तुम नहीं होते। पर क्षण बड़ा छोटा है। शायद तुम पकड़ भी न पाओ इतना छोटा है; आणविक है, तुम्हारी पकड़ से भी चूक जा सकता है।
तो या तो तुम वासना को प्रेम कहते रहते हो, कामना को प्रेम कहते रहते हो-जो प्रेम नहीं है या फिर अगर बदले तो प्रार्थना को, भक्ति को प्रेम कहने लगते हो। लेकिन प्रेम दोनों के बीच का बड़ा छोटा सा विराम है।
ऐसा ही समझो, एक श्वास भीतर जाती है, फिर श्वास बाहर आती है। तुमने खयाल किया, भीतर जाने और बाहर आने के बीच में क्षणभर को श्वास कहीं भी नहीं जाती। पर क्षण बड़ा छोटा है, खयाल करना उस पर। श्वास भीतर गई–छोटा सा विराम है; तब न तो भीतर जा रही है, न बाहर जा रही है—फिर बाहर गई, फिर छोटा सा विराम है, न तो अब बाहर जा रही है, न भीतर जा रही है।
इस छोटे से विराम को जिसने पकड़ लिया, वही प्रेम के विराम को भी पकड़ने में सफल हो पाएगा।
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