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एस धम्मो सनंतनो
तोतापुरी ने कहा, तो फिर मैं तेरी सहायता करूंगा। वह एक कांच का टुकड़ा उठा लाया और उसने कहा कि जब तेरे भीतर मां की प्रतिमा बनेगी तो मैं तेरे माथे पर कांच से काट दूंगा। जब मैं काटूं और तुझे पीड़ा हो और खून की धार बहने लगे, तब तू भी एक हिम्मत करके भीतर की मां को उठाकर तलवार काट देना । बस, फिर मैं न रुकूंगा । करना हो, कर ले।
अब यह जाने लगा तो बेचारे रामकृष्ण को करना पड़ा। इस आदमी ने उठाकर उनके माथे पर कांच के टुकड़े से लकीर काट दी, खून बहने लगा। जैसे ही उसने लकीर काटी, रामकृष्ण भी हिम्मत किए और तलवार उठाकर भीतर कल्पना को खंडित कर दिया। कल्पना के खंडित होते ही कैवल्य उपलब्ध हो गया। लेकिन बड़ी अड़चन हुई, बड़े दिन लगे।
साधन से भी आदमी की आसक्ति बन जाती है। तुम अगर प्रतिमा बना लेते हो मन में तो उसे छोड़ना मुश्किल हो जाएगा। तुमने अगर ध्यान किया, ध्यान छोड़ना मुश्किल हो जाएगा। प्रार्थना की, प्रार्थना छोड़नी मुश्किल हो जाएगी । और ध्यान रखना, छोड़ना तो पड़ेगा ही। क्योंकि ये उपचार थे, इन्हें किसी कारण से पकड़ा था। इनके पकड़ने की शर्त ही खो गई।
यह तो ऐसे ही है, जैसे कोई नया मकान बनाता है तो एक ढांचा खड़ा करता है, ढांचे के सहारे मकान बना लेता है। फिर मकान बन जाता है तो ढांचे को गिरा देता है। अब तुम्हारा कहीं ढांचे से मोह हो जाए और तुम ढांचे को न गिराओ तो तुम्हारा भवन रहने योग्य न हो पाएगा। ढांचा रहने न देगा। जब भवन बन गया तो ढांचा गिरा देना। जब सीढ़ी चढ़ गए तो सीढ़ी छोड़ देनी है।
इसलिए पहले से ही अगर ध्यान रहे इस बात का कि साधना का उपयोग तो कर लेना है, लेकिन साधना के हाथ में मालकियत नहीं दे देनी है, तो शुभ होता है।
दूसरा प्रश्न :
संसार को, बाजार को छोड़कर अपने को पा लो, यह आपने कहा। कृपया बताएं कि प्रेम संसार के बाजार में है या अपने भीतर ? और क्या प्रेम का क्षेत्र भीतर और बाहर दोनों तरफ नहीं है ?
स म
झ ना पड़े।
काम तो बिलकुल बाहर है। कामना, बाहर की तरफ भागती हुई ऊर्जा का नाम है; जिसे भीतर की याद भी नहीं रही, जिसे याद भी नहीं रही कि भीतर
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