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कुछ खुला आकाश ! रामकृष्ण ने बहुत दिनों तक भक्ति की साधना की । भक्ति की साधना तो की, लेकिन मन में कहीं एक पीड़ा खलती रही। और वह पीड़ा यह थी कि अभी अद्वैत का अनुभव नहीं हुआ। आंख बंद करते हैं, महिमामयी मां की मूर्ति खड़ी हो जाती है, लेकिन एकांत, परम एकांत - जिसको महावीर ने कैवल्य कहा- -उसका कोई अनुभव नहीं हुआ; दूसरा तो मौजूद रहता ही है। परमात्मा सही, लेकिन दूसरा तो दूसरा ही है। और जहां तक दो हैं, वहां तक संसार है। जहां तक द्वंद्व है - मैं हूं, तू है— वहां तक संसार है।
रामकृष्ण बड़े पीड़ित थे। फिर उन्हें एक संन्यासी मिल गया अद्वैत का साधक, सिद्ध। तोतापुरी उस संन्यासी का नाम था । रामकृष्ण ने पूछा, मैं क्या करूं ? अब कैसे मैं इस द्वंद्व के पार जाऊं ? तोतापुरी ने कहा, बहुत कठिन नहीं है। एक तलवार उठाकर मां के दो टुकड़े कर दो।
रामकृष्ण तो कंप गए, रोने लगे - मां के और टुकड़े ! और यह आदमी कैसी बात कर रहा है धार्मिक होकर !
परम धर्म इसी भाषा में बोलता है। परम धर्म तलवार की भाषा में बोलता है । जीसस ने कहा है, मैं तलवार लाया हूं। मैं शांति लेकर नहीं आया हूं, तलवार लेकर आया हूं। तोड़ दूंगा सब। टूटने पर ही तो शांति होगी।
तोतापुरी ने कहा, इसमें अड़चन क्या है ?
रामकृष्ण ने कहा, तलवार कहां से लाऊंगा वहां ?
तोतापुरी हंसने लगा। उसने कहा, जब मां को ले आए - कहां से लाए ? कल्पना का ही जाल है। बड़ी मधुर है कल्पना, बड़ी प्रीतिकर है, पर तुमने ही सोचा, माना, रिझाया, बुलाया, आह्वान किया, कल्पना को सजाया हजार-हजार रंगों में, वही कल्पना आज साकार हो गई है। तुमने ही उसमें प्राण डाले हैं। तुमने ही अपनी ज्योति उसमें डाली है। तुमने ही उसे ईंधन दिया, अब ऐसे ही एक तलवार भी बना लो और काट दो ।
रामकृष्ण आंख बंद करते, कंप जाते। जैसे ही मां सामने खड़ी होती, हिम्मत ही न होती । तलवार – और मां ! परमात्मा को कोई काटता है तलवार से ? आंख खोल देते घबड़ाकर कि नहीं, यह न हो सकेगा ।
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तो तोतापुरी ने कहा, न हो सकेगा तो बात ही छोड़ दो फिर कैवल्य की । मैं चला! मेरे पास समय खराब करने को नहीं है । करना हो तो यह आखिरी मौका है। और यह बचकानी आदत छोड़ो। यह क्या मचा रखा है? रोना, आंसू बहाना ! उठाकर एक तलवार हिम्मत से दो टुकड़े तो कर ।
रामकृष्ण ने कहा, मेरी कुछ सहायता करो। लगती है बात तुम ठीक कह रहे हो; लेकिन बड़े भाव से सजाया, बड़े भाव से यह मंदिर बनाया है । जीवनभर इसी में गंवाया है, यह मुझसे होता नहीं ।
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