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________________ कुछ खुला आकाश! जीने का हिस्सा है। ऐसे हम अपने को धोखा दे लेते हैं कि चलो, मरे जाते हैं; अब तो बात खतम हुई। मरने के खयाल से ही जीवन का बोझ क्षणभर को नीचे उतर गया; फिर उठाकर रख लेंगे सिर पर। कहीं कोई इतने जल्दी मरा जाता है। तुमसे मैं कहता हूं, जो मर भी जाते हैं- कुछ लोग जल्दबाजी कर लेते हैं और मर जाते हैं-अगर वे तुम्हें मिल जाएं तो वे पछताते मिलेंगे। वे कहेंगे, जरा जल्दी कर दिए; क्षणभर और ठहर जाते। कुछ लोग तेजी में गुजर जाते हैं, जल्दी कर लेते हैं। क्षणभर में घट जाए तो घट जाए, जरा विलंब हो जाए तो तुम वापस लौट आओगे। यह मन का ढंग है। कि जीवन आशा का उल्लास कि जीवन आशा का उपहास कि जीवन आशा में उदगार कि जीवन आशाहीन पुकार दिवा-निशि की सीमा पर बैठ निकालूं भी तो क्या परिणाम विहंसता आता है हर प्रात बिलखती जाती है हर शाम सुबह हंसती हुई मालूम होती है, सांझ रोती हुई मालूम होती है; द्वंद्व नहीं है लेकिन। सुबह हंसती हुई मालूम हुई, इसीलिए सांझ रोती हुई मालूम होती है। सुबह मुस्कुराती आती है, वही मुस्कुराहट सांझ आंसू बन जाती है। यह जीवन की सहज व्यवस्था है। __ आशा-निराशा, उजाला-अंधेरा, मित्रता-शत्रुता-ऐसे हम नट की तरह रस्सी पर सधे रहते हैं। वासना-साधना; भोग-योग-ऐसे हम रस्सी पर सधे रहते हैं। जानना तो तुम उस दिन भूमि मिली, जिस दिन न भोग रह जाए, न योग रह जाए; न वासना रह जाए, न साधना रह जाए; न प्रेम रह जाए, न घृणा रह जाए; न क्रोध रह जाए, न अक्रोध रह जाए; सारे द्वंद्व खो जाएं तो तुम उतर आए। वही है मुक्ति की भूमि। वही है मुक्ति का आकाश। अब तुम रस्सी पर नहीं हो। अब सम्हालने की कोई जरूरत ही नहीं है। अब गिरने का कोई खतरा ही नहीं है, सम्हालेगा कोई क्यों? सम्हालते तो हम तब हैं, जब गिरने का खतरा होता है। स्वर्ग और नर्क, जब तुम दोनों से नीचे उतर आए, तब है मोक्ष की भूमि। स्वर्ग और नर्क के बीच खिंची है रस्सी; उसी रस्सी पर चल रहा है संसार। साधना निश्चित ही समाप्त हो जाती है वासना के साथ। साधना और वासना जुड़वां बहनें हैं। सुनकर तुम्हें हैरानी होगी। कोई साधु यह बात तुमसे न कहेगा। इसलिए साधु मुझसे नाराज हैं। साधना, वासना जुड़वां बहनें हैं, उनकी शकलें बिलकुल एक जैसी हैं। वे साथ 201
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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