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एस धम्मो सनंतनो
मन का लगाव है, उससे ही तुम राग भी रखोगे, उससे ही दुश्मनी भी चलती रहेगी। ___ पश्चिम में एक बहुत अनूठी किताब कुछ वर्षों पहले प्रकाशित हुई, उस किताब का नाम है : दि इन्टीमेट एनीमी। वह पति-पत्नी के संबंधों के संबंध में किताब है : दि इन्टीमेट एनीमी।
लेकिन यह तो सूझ इसको अभी-अभी आई। उर्दू में शब्द है, हिंदी में भी उपयोग होता है: खसम। खसम का मतलब होता है, पति। और खसम का मतलब शत्रु भी होता है। मूल अरबी में तो शत्रु होता है। कैसे शत्रु से पति हो गया, बड़े आश्चर्य की बात है। कोई जोड़ नहीं दिखाई पड़ता। मूल शत्रु है, फिर पति कैसे हो गया? जरूर लोग पकड़ गए होंगे बात। सूत्र समझ में आ गया होगा, खयाल में आ गया होगा कि जिससे प्रेम है, उससे दुश्मनी भी है। ___ जहां प्रेम है, वहां घृणा है। जहां लगाव है, वहां विराग भी। जहां-जहां राग है, वहां-वहां वैराग्य आता ही रहेगा।
तुमने कभी खयाल किया, कितनी बार नहीं घर से भाग उठने का मन हो जाता है! छोड़ो पत्नी-बच्चे! मगर स्टेशन भी न पहुंच पाओगे कि लौट आओगे। इसको कोई स्थाई बात मत समझ लेना। यह कोई स्थाई भाव नहीं है, यह तो कई बार आता है। कितनी बार आदमी मरना नहीं चाहता!
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा आदमी खोजना कठिन है, जिसने जिंदगी में कम से कम दस बार आत्मघात का विचार नहीं किया हो। यह जरूरी है। जिंदगी अति हो जाती है, मरने का भाव करके सम्हाल लेते हैं। जीवन बोझिल हो जाता है, भारी हो जाता है, मरने की कल्पना से ही राहत मिल जाती है। मरता कौन है! राहत मिल गई, फिर जिंदगी में लग जाते हैं। यह तो जिंदा रहने का ही ढंग है। तो कोई अगर मरने वगैरह की बातें करे तो बहुत चिंतित मत होना; कहना, ठीक है, मरो! ___मैं एक घर में रहता था कुछ दिनों तक। नया-नया मेहमान था उस परिवार में, कुछ उस परिवार का रीति-रिवाज मुझे पता न था। एक दिन मैंने रात को कोई ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे पति-पत्नी में झगड़ा सुना। मैं चुप ही रहा, मेरे बोलने का कोई कारण नहीं बीच में। लेकिन बात यहां तक बढ़ गई कि पति ने कहा कि मैं अभी जाकर मर जाऊंगा। तो थोड़ा मैं चिंतित हुआ कि अब-मेहमान भी हूं तो भी क्या हआ! फिर भी मैंने कहा कि अभी जाने दो, तब देखंगा। वे गए भी; जब उनको मैंने घर के बाहर भी निकलते देख लिया तो मैं भागा। मैंने उनकी पत्नी से कहा, अब कुछ करना पड़ेगा। उसने कहा, फिकर मत करो; अभी पांच-सात मिनट में वापस आते हैं। वे पांच-सात मिनट में वापस भी आ गए।
सुबह मैंने उनसे पूछा कि कहां तक गए थे? उन्होंने कहा कि पता नहीं क्या मामला है, कई दफा ऐसा हो जाता है। गुस्से में चला जाता हूं, रेल की पटरी पास ही है, बस वहां तक पहुंचा कि सब ठीक हो जाता है; फिर वापस लौट आता है।
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