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एस धम्मो सनंतनो
चित्त में अशांति है तो तुम ध्यान करते हो। धीरे-धीरे अशांति विदा होगी, शांति निर्मित हो जाएगी। फिर ध्यान को मत पकड़कर बैठ जाना; नहीं तो ध्यान ही अशांति पैदा करने का कारण बनेगा। फिर ध्यान भी जाना चाहिए। __ अंधेरे में भटकते हो, किसी कल्याण मित्र का हाथ पकड़ा, फिर रोशनी आ जाए, सुबह हो जाए, तो अब हाथ को पकड़े ही मत रह जाना। हाथ का पकड़ना भी आना चाहिए, छोड़ना भी आना चाहिए।
साधन का उपयोग करना है, साधन की गुलामी नहीं अख्तियार कर लेनी है। राह पर चलना जरूर है, पर राह सिर्फ राह है, इसे जानते रहना है।
बहुत विधियां हैं; जो काम आ जाए, उसका उपयोग कर लो, लेकिन काम पूरा होते ही छोड़ देना। क्षणभर की देरी भी खतरनाक हो सकती है। क्योंकि जो खाली जगह छूट जाती है तुम्हारे भीतर, कहीं ऐसा न हो कि विधि, व्यवस्था, साधना उस खाली जगह में अड्डा जमा ले।
तो यह तो ऐसे हुआ कि तुम्हारे सिंहासन पर दुश्मन ने कब्जा किया था, तुमने मित्रों का साथ लिया, उन्होंने दुश्मन को तो हटा दिया, लेकिन खुद सिंहासन पर विराजमान हो गए। तुम जहां थे वहीं रहे; शायद पहले से भी बुरी हालत में हो गए। दुश्मन हो तो सिंहासन छीन लेना आसान भी, मित्रों से कैसे छीनोगे? अपने हैं, मित्र हैं, इनके द्वारा ही तो सिंहासन मिला है; इनसे कैसे छीनोगे?
इसलिए सदगुरु की परिभाषा समझो। सदगुरु की परिभाषा यह है कि जो एक क्षण भी जरूरत से ज्यादा तुम्हारे हाथ को न पकड़े रहे। __तुम तो पकड़ना चाहोगे। तुम तो बड़े उलझाव में हो। जब पकड़ने की जरूरत होती है, तब तुम पकड़ने से डरते हो। जब जरूरत है कि तुम हाथ पकड़ लो, तब तुम हजार उपाय करते हो न पकड़ने के। तुम्हारा अहंकार बाधा बनता है। तुम भागते हो, तुम बचते हो, तुम छिपाव करते हो। जब जरूरत थी पकड़ लेने की, झुक जाने की, समर्पित हो जाने की, तब तुम अकड़े खड़े रहते हो। बामुश्किल तुम झुकते हो। बड़ी कठिनाई से तुम हाथ पकड़ते हो। जब जरूरत थी, तब पकड़ने में तुम बाधा डालते हो। फिर जब घड़ी आएगी छोड़ने की, तब तुम छोड़ने में बाधा डालोगे। तब तुम छोड़ोगे नहीं, तब तुम जिद बांधकर बैठ जाओगे। तब तुम कहोगे, यह छोड़ने वाला हाथ नहीं, इसी ने पहुंचाया। ये चरण हम कभी न छोड़ेंगे।
सदगुरु वही है, जब तुम पकड़ना नहीं चाहते, पकड़ा दे; और जब तुम छोड़ना नहीं चाहते, तब छुड़ा दे।
साधना का कोई अर्थ नहीं है फिर। कांटे की तरह है साधना—एक कांटे को निकाल लिया, दूसरे को भी साथ ही फेंक दिया। तुम कोई सदा-सदा के लिए साधक मत बन जाना। मार्ग की बात है, उपाय है; साधन है, साध्य नहीं है। साध्य जैसे ही करीब आने लगे, वैसे ही साधन से अपने हाथ छुड़ाना शुरू कर देना। वाहन पर
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