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________________ कुछ खुला आकाश! पहला प्रश्न: - जब तक वासना है, कामना है, क्या तभी तक साधना है? स्व भा व तः रोग है तो औषधि है। स्वास्थ्य आया, औषधि व्यर्थ हुई। स्वास्थ्य में भी कोई औषधि लिए चला जाए तो घातक है। जो रोग को मिटाती है, वही रोग को फिर पैदा करेगी। मार्ग की जरूरत है, मंजिल दूर है तब तक; मंजिल आ जाए फिर भी जो चलता चला जाए, तो जो चलना मंजिल के पास लाता था, वही फिर दूर ले जाएगा। ___ और प्रश्न महत्वपूर्ण है, क्योंकि अक्सर ऐसा ही होता है। बीमारी तो छूट जाती है, औषधि पकड़ जाती है। क्योंकि मन का तर्क कहता है, जिसने यहां तक पहुंचाया, उसे कैसे छोड़ दें? जो इतने दूर ले आया, उसे कैसे छोड़ दें? जिसके सहारे इतना कुछ पाया, कहीं उसके छोड़ने से वह खो न जाए। तो अनेक यात्री मंजिल के पास पहुंचकर भी भटक जाते हैं। और बहुत सी नावें किनारे के पास आकर टकराती हैं और डूब जाती हैं। मझधार में बहुत कम लोग डूबते हैं, किनारे पर बहुत लोग डूबते हैं। यात्रा पूरी उतनी दुर्गम नहीं है, जितनी पहुंच जाने के बाद चलने की जो लंबी आदत है, उसको छोड़ना दुर्गम हो जाता है। 197
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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