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एस धम्मो सनंतनो तुम्हारी आत्मा बढ़ जाएगी, तुम्हारा सुख बढ़ेगा, आनंद बढ़ेगा। त्यागियों की भाषा भी यही है। वे कहते हैं, चीजों को घटाओ तो तुम्हारी आत्मा बढ़ेगी। ___अगर दोनों में ही चुनना हो तो भोगी थोड़ा गणित-पूर्ण मालूम होता है। वह कहता है, चीजों को बढ़ाओ तो तुम्हारी आत्मा बढ़ेगी। त्यागी कहता है, चीजों को घटाओ तो तुम्हारी आत्मा बढ़ेगी। अगर तर्क से ही चलना हो तो भोगी ही ठीक कहता होगा। लेकिन भोगी का तर्क तुम्हें ठीक नहीं लगता, क्योंकि तुमने चीजें बढ़ाकर देख ली और आत्मा नहीं बढ़ी। और त्यागी का तर्क ठीक लग जाता है-अपरिचित है। तुम सोचते हो, बढ़ाकर देख लिया, आत्मा नहीं बढ़ी, अब घटाकर देख लें। तो लोग त्याग में लग जाते हैं।
न तो चीजों के बढ़ने से बढ़ती है आत्मा, न चीजों के घटने से बढ़ती है आत्मा; आत्मा का चीजों से कुछ संबंध नहीं है। तुम्हारी छाया के बढ़ने से तुम बड़े होते हो? या कि तुम्हारी छाया के छोटे होने से तुम छोटे होते हो?
मैंने सुना है, एक दिन सुबह एक लोमड़ी अपनी मांद के बाहर निकली। सुबह का उगता सूरज था, बड़ी लंबी छाया बनी लोमड़ी की, दूर तक जाती थी। उसने सोचा, आज तो बड़ी मुश्किल हुई। नाश्ते के लिए कम से कम एक ऊंट की जरूरत पड़ेगी। इतनी बड़ी छाया! इतनी बड़ी मैं हूं। ऊंट से कम में काम न चलेगा।
वह ऊंट की तलाश में लग गई। दिनभर खोजती रही, भर दोपहरी में जब सूरज सिर पर आ गया, अभी भी भूखी थी। ऊंट तो मिला न था, मिल भी जाता तो भी करती क्या? उसने लौटकर फिर छाया देखी, छाया सिकुड़कर बिलकुल पैरों के पास आ गई थी। उसने कहा, अब तो चींटी भी मिल जाए तो भी चल जाएगा।
छाया से तुम चलोगे तो यही गति होगी। न तो छाया के बड़े होने से तुम बड़े होते, न छाया के छोटे होने से तुम छोटे होते। परिग्रह यानी छाया। वस्तुएं यानी छाया। तुम्हारा मकान, तुम्हारी धन-दौलत, यानी छाया।
मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि भोगी का तर्क तो गलत है ही, त्यागी का तर्क भी गलत है। बुद्ध पुरुषों ने यह तर्क नहीं दिया। बुद्ध पुरुष ऐसे तर्क देकर बुद्ध बनेंगे क्या? यह तो बात ही बुनियादी रूप से गलत है। यह तो आत्मा को वस्तुओं से गौण कर देना हुआ। अगर वस्तुओं के घटने-बढ़ने से आत्मा बढ़ती-छोटी होती हो तो आत्मा गौण हो गई, वस्तुएं प्रमुख हो गयीं।
न, बुद्ध पुरुषों ने कुछ और ही बात कही है। चूक हो गई है सुनने में, शास्त्र पढ़ने में।
'सत्पुरुष सभी त्याग देते हैं।'
इसलिए नहीं कि त्याग सत्पुरुष होने का मार्ग है, बल्कि जब तुम देखना शुरू करते हो, जब तुम्हारे भीतर सदबुद्धि का जन्म होता है, जब तुम ध्यान की अवस्था को उपलब्ध होते हो, जब तुम्हारे भीतर तरंगें विचारों की थोड़ी शांत होती हैं, आंखों