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एस धम्मो सनंतनो
हम जानते थे अक्ल से कुछ जानेंगे
जाना तो यह जाना कि न जाना कुछ भी समझने की बहुत बात नहीं है, जागने की बात है। सोचने की बात नहीं है, होश लाने की बात है। इसलिए पर्दा नहीं है सत्य के ऊपर कि तुम्हारे सोचने में कुछ कमी है-तुम तो जरूरत से ज्यादा सोच ही रहे हो–पर्दा इसीलिए है कि तुम बहुत सोच रहे हो और आंखें विचारों से भरी हैं; और निर्विचार आंख ही देख सकती है।
सम्यक ज्ञान का अर्थ है : ऐसा ज्ञान, जो सोचने से नहीं मिलता, विचारने से नहीं मिलता; ऐसा ज्ञान, जो निर्विचार होने से फूट पड़ता है—झरने की तरह, जैसे कोई चट्टान हटा दी हो, दबा झरना प्रगट हो गया हो।
आह पर्दा तो कोई मान-ए-दीदार नहीं
अपनी गफलत के सिवा कोई दरो-दीवार नहीं सत्य पर कोई पर्दा नहीं है। पर्दा है तो अपनी गफलत का है, अपनी बेहोशी का है। वह अपनी ही आंख पर है।
सत्य तो नग्न खड़ा है तुम्हारे सामने, तुम आंखें बंद किए खड़े हो। या आंखें भी खुली हैं तो आंखों पर बड़े पर्दे हैं विचारों के, बेहोशी के। विचार एक प्रकार की बेहोशी है, जिसमें तुम खोए रहते हो-सपना है, जागते-जागते देखा गया।
बुद्ध को समझना हो तो समझ से काम न चलेगा, समझ को हटाना पड़ेगा; फिर से नासमझ होना पड़ेगा; फिर से लौटना पड़ेगा बचपन की तरफ; फिर से बचपन जैसा निर्दोष भाव, फिर से बच्चों जैसा खाली मन, फिर से जिज्ञासा से भेरी आंखें-ज्ञान से भरा हुआ मस्तिष्क नहीं-फिर से उत्फुल्लता, फिर से एक ताजगी।
अगर तुम अपने बचपन को फिर लौटा लाओ-जीसस ने कहा है, जो बच्चों की तरह होंगे, वे ही मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे-अगर तुम अपने बचपन को फिर लौटा पाओ तो ही तुम बुद्ध पुरुषों के वचन समझने में समर्थ हो सकोगे।
धम्मपद पर बहुत टीकाएं हैं, लेकिन अक्सर पंडितों की हैं, शास्त्रज्ञों की हैं। उन टीकाओं में मूल बात खो जाती है। टीकाएं कुछ खोल नहीं पातीं, जो पहले ही बंद था, उसे और बंद कर जाती हैं। टीकाओं के ऊहापोह में वह दीया, जो बुद्ध ने जलाया, उसे देखना और भी मुश्किल हो जाता है। ____ मैं कोई टीका नहीं कर रहा हूं। यह कोई बुद्ध के वचनों की व्याख्या नहीं है। यह जैसा मैं देखता हूं, मेरी दृष्टि को ही कह रहा हूं; बुद्ध तो बहाना हैं। जैसे खूटी पर कोई कोट को टांग देता है, ऐसे मैं बुद्ध पर अपने को टांग रहा हूं। इससे बुद्ध का कुछ लेना-देना नहीं है।
और इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, इसीलिए ये वचन बुद्ध के बहुत करीब हैं। इनको मैंने सोच-विचारकर नहीं तुमसे कहा है, इनके सत्य को मैंने अलग से जाना है। धम्मपद को पढ़कर मैंने धम्मपद के सत्य को नहीं जाना; सत्य को मैंने जाना है,
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