________________
उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी
फिर धम्मपद में देखा। धम्मपद मुझे गवाह मालूम पड़ा ।
सरल होओ थोड़े; समझ से काम न होगा। समझ बड़ी नासमझी है। होशियारी में चूकना मत। शास्त्रों को थोड़ा हटाओ, थोड़ी सरलता से, खाली आंखों से तर्क जाल से नहीं - देखो; और सम्यक दृष्टि बहुत दूर नहीं है।
जिस जगह सदियों के सिजदे रहे नाकामयाब
उस जगह इक आह तकमीले इबादत हो गई
जहां सैकड़ों वर्ष तक की प्रार्थनाएं व्यर्थ हो जाएं, कभी-कभी वहां सरल हृदय से उठी एक छोटी सी आह, प्रार्थना की पूर्णता बन जाती है।
।
आज इतना ही ।
-
195