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________________ उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी जब तुम नहीं चला रहे हो, पैर कहना ठीक नहीं; क्योंकि पैर तो वही हैं, जो चलते हैं। जब चलते हैं, तभी पैर हैं। जब चल ही नहीं रहे तो पैर क्या कहना! नहीं के बराबर हैं। नहीं हैं, ऐसा कहना भी ठीक नहीं; क्योंकि चलना हो तो चल सकते हैं। शांत हैं। मन शांत होता है बुद्ध पुरुषों का; इसका अर्थ हुआ कि खाली बैठे हों तो चलता नहीं। तुम्हारा मन, खाली बैठे हो तब और भी चलता है और भी भागता है। तुम लाख उपाय करो रोकने के, रुकता नहीं। जितना रोकना चाहो, और दौड़ता है, और भागता है, और बेचैनी बढ़ती है। बहुत लोग हैं, जो चाहते हैं, मन शांत हो जाए। लेकिन जब तक वासनाओं की समझ नहीं आई, मन शांत होगा ही नहीं। ___ मन इसलिए दौड़ रहा है, मन कहता है, क्या कर रहे हो? शांत करने की बात कर रहे हो, अभी कुछ मिला तो नहीं। अभी कुछ पाया नहीं, अभी शांत कैसे हो जाएं? मिलते ही शांत हो जाता है। उसकी झलक मिलते ही शांत हो जाता है। तो मैं तुमसे यह नहीं कहता कि तुम मन को शांत करने की कोशिश करो, मैं तुमसे कहता हूं, तुम उसकी झलक पाने की कोशिश करो। विधायक करो तुम्हारी प्रक्रिया को। मन से मत लड़ो, मन को चलने दो। उपेक्षा करो। ठीक है चले। तुम थोड़ी सी उसकी झलक पाने की सीधी कोशिश में लगो। किसी दिन झलक मिल जाएगी, उसी क्षण तुम पाओगे, मन एकदम सन्नाटे से भर गया। उस घड़ी में तुम चलाना चाहोगे तो न चलेगा। उसकी मौजूदगी में-सत्य कहो उसे, परमात्मा कहो, निर्वाण कहो, आत्मा कहो-उसकी मौजूदगी में मन एकदम शांत हो जाता है। तुम मन को शांत करने की निरर्थक कोशिश में मत लगे रहना; वह शांत होगा ही नहीं। वह शांत तभी होता है, जब मालिक आ जाता है। जैसे किसी स्कूल की क्लास में छोटे बच्चे नाच-कूद रहे हैं, शोरगुल मचा रहे हैं, शिक्षक प्रविष्ट हुआ, शांति छा जाती है, सन्नाटा हो जाता है। सब अपनी जगह बैठ गए, किताबें उठा लीं, पढ़ने-लिखने लगे, ऐसा दिखलाने लगे कि जैसे कोई शोरगुल था ही नहीं; कहीं कोई बात ही न थी। बस, सम्राट को भीतर बुला लो! मालिक जरा सा आ जाए, सब शांत हो जाता 'सम्यक ज्ञान के द्वारा...।' कौन से ज्ञान को सम्यक ज्ञान कहते हैं बुद्ध? जो ज्ञान शास्त्र से मिले, वह मिथ्या; जो ज्ञान जीवन से मिले, वह सम्यक। जो ज्ञान जीवन से मिले, वही ज्ञान। जो ज्ञान और किसी ढंग से मिल जाए, वह ज्ञान का धोखा, आभास, उधार। ठीक ज्ञान वही है, जो जीवन का निचोड़ हो। ___ 'सम्यक ज्ञान के द्वारा विमुक्त, उपशांत अर्हत का मन शांत हो जाता है, उसकी वाणी शांत हो जाती है।' 191
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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