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एस धम्मो सनंतनो
और जब तक तुम इससे मुक्त नहीं होते, तब तक तुम उसे न देख सकोगे, जो तुम्हारे भीतर छिपा बैठा है; जो तुम हो। नजर एक ही तरफ हो सकती है-या बाहर, या भीतर। या तो घर के भीतर आओ, या घर के बाहर; तुम दोनों जगह साथ-साथ न हो सकोगे। ___ आईने की तरह गाफिल खोल छाती के किवाड़
देख तो कौन बारे तेरे कासाने के बीच कौन तेरे हृदय के मंदिर में कैसा सौभाग्य लिए छिपा बैठा है।
आईने की तरह गाफिल खोल छाती के किवाड़ मगर यह फुरसत कब मिले? तुम्हारे हाथ तो कहीं और हजारों किवाड़ों को पकड़े खड़े हैं। न मालूम कितने किवाड़ों पर तुम्हारे हाथ दस्तक दे रहे हैं। फुरसत कहां?
मेरे पास लोग आते हैं, उनसे मैं कहता हूं, कुछ ध्यान करो। वे कहते हैं, समय कहां? फुरसत कहां?
ठीक ही कहते हैं। फुरसत कहां है? समय कहां है? वे कहते हैं; जब समय मिलेगा, तब करेंगे। मैं उनको कहता हूं, कभी भी न मिलेगा। क्योंकि जिंदगी जैसे-जैसे हाथ से जाने लगेगी, वैसे-वैसे तुम और भी तड़फकर और भी घबड़ाकर दौड़ने लगोगे चारों तरफ। और विक्षिप्त होकर...अभी तक कुछ मिला नहीं।
आए भी लोग, बैठे भी, उठ भी खड़े हुए ___मैं जा ही ढूंढ़ता तेरी महफिल में रह गया।
तो जैसे-जैसे बुढ़ापा करीब आएगा, तुम्हारा पागलपन बढ़ेगा। तुम और घबड़ाकर भागने लगोगे। मौत करीब आने लगेगी। मौत दस्तक देगी तुम्हारे द्वार पर, तब तुम न मालूम कितने करोड़ों द्वार पर दस्तक देते फिर रहे होओगे।
मौत इसीलिए घटती है कि तुम्हें कभी घर में नहीं पाती। जिस दिन मौत तुम्हें घर में पा लेती है, उसी दिन घटती नहीं; उसी दिन तुम अमृत को उपलब्ध हो जाते हो। मौत आ जाती है और तुम नहीं मरते-पर अपने घर में तुम्हें पाए तभी। ____'सम्यक ज्ञान के द्वारा विमुक्त, उपशांत अर्हत का मन शांत होता है, उसकी वाणी शांत होती है, उसका कर्म शांत होता है।'
जैसे ही आनंद भर जाता है भीतर, सब शांत हो जाता है। मन शांत होता है, वाणी शांत होती है, कर्म शांत हो जाता है।
इसे समझना। मन शांत होता है, इसका क्या अर्थ? इसका अर्थ होता है : मन का जब उपयोग करना हो, तभी गतिमान होता है; जब न उपयोग करना हो, तब शून्य रहता है, शांत रहता है।
बुद्ध भी बोलेंगे तो बोलेंगे तो मन से ही; लेकिन जब नहीं बोलते, तब मन नहीं होता है। जैसे तुम जब नहीं चलते तो पैर बैठे रहते हैं, चलते नहीं। असल में उनको,
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