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________________ उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी वहीं समाप्त हो गए। आए भी लोग, बैठे भी, उठ भी खड़े हुए - मैं जा ही ढूंढ़ता तेरी महफिल में रह गया तुम जगह ही खोजते हुए कहां खड़े हों, कहां बैठे-एक इंद्रिय के पीछे भागे, दूसरी के भागे, तीसरी के भागे। तुम इस बिबूचन में, इस विडंबना में ही रहे। __आए भी लोग, बैठे भी, उठ भी खड़े हुए। कोई बुद्ध आता है—आता भी है, बैठता भी है, उठ भी खड़ा होता है; जीवन का सार भी ले लेता है, जीवन का निचोड़ ले लेता है; और आगे की यात्रा पर निकल जाता है। और तुम! मैं जा ही ढूंढ़ता तेरी महफिल में रह गया __ मरते वक्त जीवन हाथ से जब चूक जाए, तब कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे मन में भी यही खयाल रह जाए आए भी लोग, बैठे भी, उठ भी खड़े हुए यह रह जाएगा, अगर इंद्रियों के पीछे दौड़ते रहे। मेरी बात थोड़ी कठिन मालूम होगी। मैं तुमसे कहता हूं: इंद्रियों के पीछे मत दौड़ना। मैं तुमसे यह भी कहता हूं : इंद्रियों को मार-पीटकर अपने पीछे मत कर लेना। क्योंकि जिस व्यक्ति ने मार-पीटकर इंद्रियों को पीछे कर लिया है, वह भला लगे देखने में कि इंद्रियां उसके पीछे चल रही हैं, सच नहीं है यह। वह इंद्रियों के पीछे लगा रहेगा। क्योंकि पूरे वक्त जिसको मार-पीटकर पीछे किया है, उसका खयाल रखना पड़ेगा-भाग न निकले। तुम्हारे साधु-संन्यासियों को गौर से देखना; तुमसे भी ज्यादा भयभीत! कंप रहे हैं, डर रहे हैं। कोई इंद्रिय छिटक न जाए। कोई वासना निकल न जाए यहां-वहां। इतने प्राण जहां कंपते हों, इतना जहां भय हो, वहां परमात्मा का प्रवेश हो सकेगा? बुद्ध ने कहा है, महावीर न कहा है, अभय उसके आगमन का द्वार है। तो इतने भय में वह आ सकेगा? __नहीं, वह आता है तब, जब तुम मस्ती से गीत गाते चलते हो। तुम अपनी बांसुरी बजाते चलते हो और इंद्रियां तुम्हारे पीछे चलती हैं। कृष्ण का प्रतीक इसी तरफ इशारा है। लोग बड़ी गलती कर लिए हैं और गलत अर्थ कर लिए हैं। कृष्ण का बांसुरी बजाना और गोपियों का उनके चारों तरफ नाचना–रास की जो कल्पना है, वह यही है। इंद्रियां गोपियां हैं और जब आत्मा की बांसुरी बजने लगती है, वे चारों तरफ नाचने लगती हैं। रास शुरू हो जाता है। ___कहते हैं, कृष्ण की सोलह हजार गोपियां थीं—सोलह हजार वासनाएं। यह तो सिर्फ प्रतीक संख्या है। इसका अर्थ होता है, हजार-हजार; बहुत वासनाएं हैं—सोलह हजार—लेकिन अगर भीतर की बांसुरी बजने लगे, कृष्ण का आविर्भाव हो, तब वे 179
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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