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एस धम्मो सनंतनो
बैठकर, अचानक प्रफुल्लता तुम्हारे भीतर सरकने लगती है, सुबगने लगती है। किसी दूसरे व्यक्ति के पास बैठकर, अचानक तुम दीन-हीन मालूम होने लगते हो। कुछ तुम्हारे भीतर सिकुड़ने लगता है। किसी व्यक्ति के पास आते ही, जैसे सुबह करीब आ जाए; और किसी दूसरे व्यक्ति के पास आते ही, जैसे सुबह दूर हो जाए। किसी व्यक्ति के पास आते ही, जैसे फूल खिलने लगें, और किसी व्यक्ति के पास आते ही, जैसे सब मुझ जाए।
शरीर की भाषा है। शरीर की भाषा को समझना होगा। शरीर की भाषा को जिसने समझना शुरू किया, वही सारथी है। शरीर से लड़ना नहीं है, यह तो पागलपन है। जिसकी तुम सवारी कर सकते हो, जो तुम्हें दूर-दूर की यात्रा पर ले जाता है, उसके साथ संघर्ष में उतर जाना निपट अज्ञान है।
'सारथी द्वारा दान्त किए गए घोड़े के समान।'
दान्त का अर्थ, सारथी के प्रेम में शांत हो गए घोड़े के समान। सारथी के प्रेम, सारथी की समझ, सारथी के अनुग्रह में घोड़ा जैसे दान्त हो जाता है, झुक जाता है, स्वीकार कर लेता है। क्योंकि एक बात सारथी की समझ में आ जाती है घोड़े को कि घोड़ा जितना अपने को चाहता है, उससे भी ज्यादा सारथी चाहता है। एक बात समझ में आ जाए घोड़े को कि जो मैं करूंगा, उसमें शायद भूल भी हो जाए, सारथी जो करेगा, उसमें भूल न होगी। सारथी मुझसे ज्यादा समझदार है-बस, पर्याप्त है। घोड़ा शांत होकर पीछे चलने लगता है।
जैसे छोटा बच्चा अपने पिता का हाथ पकड़ लेता है और साथ चल पड़ता है; यह जानता है कि मैं भटक जाऊं, पिता न भटकेंगे। वे ज्यादा जानते हैं, जीवन उन्होंने ज्यादा देखा, रास्ते उन्होंने ज्यादा पहचाने हैं। हाथ पकड़ लिया, बात भूल जाती है। फिर वह मस्ती से चलता है। भला पिता परेशान हो, चिंतित हो कि कहीं भूल न जाए, भटक न जाए, लेकिन बेटे को अब कोई चिंता नहीं है। वह और हजार बातें करता है, लेकिन भटकने की कोई चिंता नहीं।
जिस दिन तुम्हारा शरीर और तुम्हारे बीच मैत्री का संबंध बन जाता है, जिस दिन तुम कुशल हो जाते हो शरीर की भाषा समझने में और शरीर को अपनी भाषा समझाने में, उस दिन शरीर तुम्हारे पीछे चलने लगता है; उस दिन इंद्रियां यहां-वहां नहीं भागतीं, तुम्हारे पीछे चली आती हैं। जैसे गड़रिए के पीछे उसकी भेड़ें चली आती हैं, ऐसी तुम्हारी इंद्रियों का समूह तुम्हारे पीछे चला आता है। और यह बड़े आनंद का अनुभव है, जब तुम्हारी इंद्रियां तुम्हारे पीछे आती हैं। ___अभी तो ऐसा है, सभी इंद्रियां सभी दिशाओं में भाग रही हैं। तुम कभी एक के पीछे भागते हो, कभी दूसरे के पीछे भागते हो, कभी तीसरे के पीछे भागते हो। तुम्हारा सारा जीवन आपाधापी के सिवाय और कुछ भी नहीं। अंत में तुम पाओगे कि दौड़-धूप बहुत हुई, हाथ कुछ भी न लगा। अंत में तुम पाओगे, जहां खड़े थे,
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