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________________ उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी जीसस का प्रसिद्ध वचन है कि तुम दूसरों के साथ वही करना, जो तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ करें। इसके साथ ही मैं एक वचन और जोड़ देना चाहता हूं : तुम अपने साथ भी वही करना, जो तुम मानते हो कि दूसरे के साथ करना उचित है। जो दूसरे के साथ करना तक अनुचित है, वह अपने साथ तो करना अनुचित होगा ही। हिंसा को तुम आत्म-हिंसा मत बना लेना। और अक्सर हिंसा आत्म-हिंसा सरलता से बन जाती है। __इसलिए इस सूत्र के जो अर्थ किए गए हैं, वे अर्थ बुनियादी रूप से गलत हैं। उन अर्थों में ऐसा भाव है कि जैसा घोड़े को मार-पीटकर कोई बस में ले आए, ऐसे ही तुम अपने को मार-पीट करके बस में ले आना। यह संभव नहीं है। यह असंभव है। इंद्रियों को समझना होगा, शरीर को समझना होगा, शरीर की भाषा को समझना होगा। तुम शरीर में बसे हो। तुम्हें शरीर में रहना है। तुम्हें शरीर का उपयोग करना है। भोग के लिए ही नहीं, तुम्हें ध्यान के लिए भी शरीर का उपयोग करना है। . इस घोड़े को मार मत डालना। इस घोड़े को ऐसा न करना कि खाना खिलाना बंद कर दो, ताकि इतना दीन-हीन हो जाए कि तुम जहां चलाओ, वहीं चले। क्योंकि इसकी ऊर्जा ही खो जाए, इसमें कोई शक्ति ही न रहे। यह शरीर तो शक्तिशाली हो; क्योंकि इसी शरीर की तरंगों पर यात्रा करनी है। यह शरीर संसार में ही नहीं लाता, यही शरीर परमात्मा में भी ले जाता है। इसी शरीर से उसके द्वार भी खुलेंगे। यह शरीर मंदिर है। इसलिए मैं इस सूत्र की व्याख्या करता हूं: एक कुशल सारथी घोड़े के साथ दोस्ती बांधता है, गहरी मैत्री स्थापित करता है, प्रेम का हाथ फैलाता है। धीरे-धीरे... और प्रेम का हाथं कौन नहीं समझता? घोड़े भी समझ लेते हैं। प्रेम का हाथ कौन नहीं समझता? प्रेम के हाथ को समझने के लिए बुद्धिमानी की जरूरत नहीं, केवल हृदय धड़कता हो, बस काफी है। प्रेम के हाथ को शरीर भी समझ लेता है। . तुमने कभी यह खयाल किया? शरीर शास्त्र की भाषा न समझें, प्रेम की भाषा समझ लेता है। अगर कोई तुम्हारे हाथ पर हाथ प्रेम से रखे तो क्या तुम्हें समझने में देर लगती है? कभी मां अपने बेटे को चांटा भी मार देती है, चांटा तो वही है, लेकिन भीतर हाथ में प्रेम की ऊर्जा है। फिर कोई और उसे चांटा मार देता है, चांटा वही है, भौतिकशास्त्र कुछ भेद न कर पाएगा; दोनों में एक ही घटना घटी है, लेकिन बेटे के हृदय में व्याख्या बड़ी भिन्न है। मां के प्रति वह क्रोध से नहीं भरता. शायद और भी गहरे अनुग्रह से भर जाता है। उसने मारा, वह प्रेम के ही कारण। किसी दूसरे ने मारा, वह प्रेम के कारण नहीं। हाथ की ऊर्जा बदल जाती है। हाथ की उष्मा बदल जाती है। शरीर भी भाषा समझता है। तुमने कभी खयाल किया? किसी व्यक्ति के पास 177
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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