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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम दूसरों के प्रति भी हिंसा से भर जाते हो, जहां तुम्हारे अहंकार को चोट लगती है। इसे समझ लेना । दूसरों के प्रति तुम हिंसा करते हो तभी, जब तुम्हारे अहंकार को चोट लगती है। अपने प्रति हिंसा करने वाले आदमी के अहंकार को बड़ा रस आने लगता है, बड़ा भरने लगता है अहंकार। लोग पूजा देते हैं, श्रद्धा देते हैं, सम्मान देते हैं । तुमने कभी खयाल किया... । I एक जैन मुनि मुझे मिलने आए थे; उन्होंने मेरी कुछ बातें सुनी होंगी, कुछ किताबें पढ़ी होंगी, उनको जमीं । सोच-विचारशील आदमी मालूम पड़ते थे। कहने लगे, छोड़ देना चाहता हूं यह । समझ में आया है कि अभी तक सिर्फ अपने को सताता रहा हूं। और अब कठिनाई हो गई है, जब से आपकी बात समझ में आनी शुरू हुई है, तब से यह एक नई बेचैनी शुरू हो गई है कि यह मैं क्या कर रहा हूं? इसे छोड़ देना चाहता हूं। तो मैंने कहा, पूछना किससे है ? इसे लेते वक्त मुझसे नहीं पूछा था, इसे छोड़ते वक्त मुझसे पूछने की क्या जरूरत है ? उन्होंने कहा, पूछना जरूरी है, क्योंकि मैं पचास साल का हुआ; अभी जो मेरे चरणों में सिर रखते हैं, वे मुझे घर में बर्तन साफ करने की नौकरी भी देने को राजी न होंगे। मुझमें कोई और योग्यता नहीं है, बस यही एक योग्यता है— अपने को सताने की, उपवास करने की, व्रत करने की, नियम करने की; यही एक योग्यता है । यही मेरी पूजा और श्रद्धा का आधार है। यह मैं छोड़ देता हूं तो जो मेरे चरणों में सिर रखते हैं, आज सब कुछ लुटाने को तैयार हैं मेरे लिए, वे मुझे घर में बर्तन साफ करने की भी नौकरी न देंगे; इसलिए पूछना जरूरी है। उस दिन मुझे खयाल आया कि तुम जिनकी पूजा कर रहे हो, तुमने कभी सोचा कि अगर वे अपने को सताना बंद कर दें, तो तुम उनमें पूजा योग्य कुछ भी पाओगे ? उनके जीवन में कोई सृजन है? उनके जीवन में स्रष्टा की कोई झलक है ? वे सुंदर गीत बना सकेंगे, मूर्तियां रच सकेंगे, चित्र बना सकेंगे, कोई आविष्कार कर सकेंगे, चिकित्सक हो सकेंगे, शिक्षक हो सकेंगे - क्या हो सकेंगे ? उनके जीवन में और कुछ भी नहीं है। 1 तब मुझे दिखाई पड़ना शुरू हुआ; तब मैंने गौर से देखना शुरू किया तो मुझे लगा कि जीवन में जो लोग किसी भी भांति सफल नहीं हो पाते, जीवन की प्रतिस्पर्धा में जो कहीं भी टिक नहीं पाते, जो सभी तरह से प्रतिभाहीन हैं, वे ही तुम्हारे संन्यासी बन गए हैं। इतना तो कोई भी कर सकता है। खुद को सताने में कोई प्रतिभा की जरूरत है? मूढ़ से मूढ़ व्यक्ति यह कर सकता है । - वस्तुतः तो सिर्फ मूढ़ ही कर सकता है; जिसमें थोड़ी बुद्धि हो, वह करेगा कैसे ? क्या उसे यह दिखाई न पड़ेगा – जो दूसरे के साथ करना गलत है, वह अपने साथ करना सही कैसे हो सकता है ? - 176
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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