________________
एस धम्मो सनंतनो
है । जीवन से सीधा संपर्क साधा, तब उन्होंने कुछ जाना । वह जानना बुद्धि का न रहा फिर । वह जानना उनकी समग्रता का हो गया।
और जब तुम्हारे रोम-रोम से जानना निकलता है, तुम्हारी श्वास- श्वास में गंध आ जाती है जानने की, जब तुम्हें चेष्टा भी नहीं करनी पड़ती कि तुम जो जानते हो उसे याद रखो; जब वह तुम्हारा होना ही हो जाता है, जिसे भूलने का ही उपाय न होगा, जिसे तुम कहीं भूलकर रख आ न सकोगे, जो तुम्हारे भीतर की अंतर - ध्वनि हो जाती है, जो तुम्हारी आवाज हो जाती है, तभी - तब इन सूत्रों का अर्थ बिलकुल और होता है। अगर इन्हें तुमने शास्त्र की दृष्टि से देखा तो इनके अर्थ बदल जाते हैं। समझने की कोशिश करो। पहला सूत्र है :
'सत्पुरुष सभी त्याग देते हैं। वे कामभोगों के लिए बात नहीं चलाते । सुख मिले या दुख, पंडित विकार प्रदर्शित नहीं करते।'
इसे तुम बुद्धि से पढ़ सकते हो - जैसा कि पढ़ा गया है सदियों से — और तब भयंकर हानि हो गई है। क्योंकि बुद्धि से तुम पढ़ोगे तो यह समझ में आएगा : सत्पुरुष सभी त्याग देते हैं । तो जोर लगता है त्याग पर । साफ है, वक्तव्य में कहीं कोई भूल-चूक नहीं है, सीधा है।
'सत्पुरुष सभी त्याग देते हैं।'
तुम जब इसे सुनोगे, तुम जब इसे गुनोगे – जीवन से नहीं, शास्त्र से; जब शब्द ही तुम्हारे भीतर एक तरंग बनकर विचार का जन्म देगा तो तुम्हें भी समझ में आएगा - सब छोड़ना होगा, तब तुम सत्पुरुष हो सकोगे। बस, भूल हो गई।
बुद्ध कह रहे हैं, सत्पुरुष सब छोड़ देते हैं । बुद्ध यह नहीं कह रहे हैं कि जो सब छोड़ देते हैं, वे सत्पुरुष हो जाते हैं । बुद्ध यह कह रहे हैं, सत्पुरुष हो जाओ, सब छूट जाता है। छूटना, छाया की तरह परिणाम है । छूटना, छोड़ना नहीं है।
फिर से दोहराऊं, 'सत्पुरुष सभी त्याग देते हैं । '
अब सोचने का यह है कि त्यागने के कारण सत्पुरुष होते हैं, या सत्पुरुष होने के कारण त्याग देते हैं ?
अगर बुद्ध को यही कहना था कि सब छोड़ने वाले सत्पुरुष हो जाते हैं, तो ऐसा ही कहा होता कि जो सब छोड़ देते हैं, वे सत्पुरुष हैं। लेकिन बुद्ध कहते हैं, सत्पुरुष सब छोड़ देते हैं। सत्पुरुष होना, छोड़ने से कोई अलग बात है । छोड़ना पीछे-पीछे आता है, जैसे गाड़ी चलती है तो चाक के निशान बन जाते हैं।
तुम चलते हो, तुम्हारी छाया तुम्हारे पीछे चली आती है । उसको लाना थोड़े ही पड़ता है। तुम लौट लौटकर देखते थोड़े ही हो कि छाया कहीं छूट तो नहीं गई; आती है कि नहीं आती? तुम छोड़ना भी चाहो तो भी छोड़ न सकोगे। छाया आती ही है । छाया तुम्हारी है, जाएगी कहां ?
त्याग ज्ञान के पीछे ऐसे ही आता है, जैसे तुम्हारे पीछे छाया आती है— परिणाम
-